________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संशयतिमिरप्रदीप ।
सुखों का कारण भी है, इसलिये योग्य और प्राचीन प्रणाली है। परन्तु दीपक के विषय में नतो कोई मंत्रविधान है न कोई शास्त्रविधान है और प्राचीन हो सो भी नहीं है।" इत्यादि युक्तियों से प्रतीकार किये जाने का यदि किसी तरह उपाय किया भी तो फिर विचारे पूछने वाले की एक तरह बारी आजाती है। यदि पूछने वाला खुशामदी हुआ तो हां में हां मिला कर उनके चित्तकी शान्ति करदेता है । यदि स्वतंत्रावलम्बी हुआ तो उनकी क्रोध वन्हि से प्रशान्त होना पड़ता है । यद्यपि वन्हि से शान्तिता नहिं होती परन्तु इस विषम विषय की आलोचना में असंभाव्य को भी संभाव्य मानना पड़ता है। जोहो परन्तु हमारा आत्मा इस विषय पर गवाई नहीं देता कि इस तरह दीपक की जगहँ नारियल के खंड युक्त कहे जा सके ? इसलिये सारसंग्रह के कुछ श्लोको को यहां पर लिखते हैं उनका ठीक २ शास्त्रानुसार समाधान करके हमार चित्तकी शान्ति करेंगे उनका अत्यन्त अनुग्रह मानगे।
नालिकेरोद्भवः खण्डः पातरक्तीकृतैरहो । पूजनं शास्त्रतः कस्माद्रोतिर्निस्सारिताऽधुना ॥ निद्रागारविवाहादी दीप्रदीपालिकालिभिः । प्रयत्नेन कृतं दीपं पूजने निन्द्यते कुतः ॥ गणनाथमुखात्पूर्वरिभिः किन्न निश्चितम् । पुष्पदीपादिभिश्चाहन्पूज्यो नो वति तद्वद ।। असत्यत्यागिभिः प्रोक्तं चन्मिथ्या तत्त्वया कथम् । बोधत्रिकं बिना बुद्धं मत्पश्नस्योत्तरं कुरु ॥
For Private And Personal Use Only