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संशयतिमिरप्रदीप।
मदापा
ANNA
आरम्भपुष्पदीपादिपूजनात्कति मानुषाः । दुर्गतिं प्रययुश्चेति विस्तरं वद शास्त्रतः॥ यतोऽस्माकं भवेत्सत्या प्रतीतिस्तव भाषिते । नो दृष्टः शास्त्रसन्दोहश्चेद् वृथा कुषथं त्यज ॥ अर्थात्-केशरादिकों के रंग से रंगे हुये नारियल के टुकड़ों से जिनभगवान का पूजन करना यह रीति किन शास्त्रों में से निकाली गई है? शयन भवन में तथा विवाहदिकों में दीपकोंकी श्रेणिये अनेक तरह के उपायों से जलाई जाती है फिर पूजन में क्यों निन्दा की जाती है ? जिनदेव के मुखकमल से पूर्वाचार्यों ने “दीप, पुष्प, फलादिकी से जिनभगवान् पूज्य है बा नहीं" इस तरह का निश्चय किया था या नहीं ? झूठे बचनों को किसी तरह नहीं बोलने वालों का कहा हुआ ठीक नहीं है यह बात मति श्रुति, और अवधि ज्ञान के विना कैसे जानी गई ? मेरे इन प्रश्नों का उत्तर ठीक २ देना चाहिये । पुष्प, दीप, फलादिको से जिनभगवान की पूजन करने से कितने मनुष्य दुर्गति को गये यह बात विस्तार पूर्वक कहो ? जिससे तुम्हारे कथन में हमारी सत्य प्रतीति हो यदि कहोगे हमन शास्त्री को नहीं देखे हैं तो फिर अपने कुमार्ग को तिलाञ्जली दो।। प्रश्न-यह तो ठीक है परन्तु घृत तो,इस काल में पवित्र नहीं मिलता है फिर क्या ऐसे वैसे घी को काम में ले
आना चाहिये ? उत्तर-इस समय घी पवित्र नहीं मिलतायह कहना शैथल्यता
का सूचक है । प्रयत्न करने वालों के लिये कोई बात
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