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संशयति मिरप्रदीप।
क्या उन्हें पाप का भय नहीं था ! नहिं नहिं, यह कहना सर्वथा अनुचित है कि भट्टारकों ने मनमाने शास्त्रों को बना. डाले हो । मैंने जातक अपनी बुद्धिपर जोर दिया है तो, मुम भट्टारकों का कहनाभोमहर्षियों के समान निर्दोष दीखा है। और सत्यनुसार उसे सिद्ध भी कर सकता है। जिस किसी महोदय को मेरे लिखे में और भी अधिक इस विषय को प्राशंका हो वे कृपया अनुग्रहीत करें । मैं अवश्य उस विषय के निर्णयार्थ प्रयास करूंगा। प्रश्न-इन प्रमाणों में कितने ग्रन्थ कथाभाग केभी हैं। उनकी
तो आज्ञा के समान प्रमाणता नहीं होसकती। क्योंकि कथा भाग के ग्रन्थों में केवल उन लोगों का कर्तव्य लिखा रहता है। कथा भाग के ग्रन्थों को आना के समान मानने
से राजा वचकणे को तरह भी अनुकरण करना पड़ेगा? उत्तर-कथा भाग सम्बन्धी ग्रन्थों के प्रमाण देने से हमारा
केवल इतना हो प्रयोजन है कि कितने लोग ऐसा भी कह देते हैं कि, हां शास्त्रों में तो अमुक बात लिखी है परन्तु उसे किमी ने की भौ? इस प्रश्न का अवकाश उन लोगों को न रहे। परन्तु इस से यह नहीं कह सकते कि उन ग्रन्थों को विल्कुल प्रमाणता ही नहीं है । यदि ऐसा मान लिया जाय तो प्रायः वृद्ध लोग कहा करते हैं कि अपनी पुरानो चाल पर चली, कुकर्म मत करो तुम्हारे कुल में सब सदाचारी हुये हैं तुम्हें भी वैसे ही होना चाहिये इत्यादि । यह भी कुल के गुरु जनों का कर्तव्य है तो, इमे छोड़ कर उलटे चलना चाहिये क्या ? अथवा शास्त्रों में भी बड़े २ सत्पुरुष पवित्र कर्मों
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