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संशयतिमिरप्रदीप ।
दीखने में नेत्रों को बहुत मनोहर, और अच्छे ३ रसों से बने हुवे नैवेद्य को जिन भगवान् के चरणों के आगे चढ़ाता हूं। इसी तरह पद्मनन्दि पच्चीसी, जिन संहिता, नवकार श्रावका चारादि संम्पूर्ण शास्त्रों की आशा है । इसलिये नैवेद्य में सब तरह की सामग्री चढ़ानी चाहिये । वसुनन्दि स्वामी ने नैवेद्य पूजन के फल को कहते हुवे
कहा है कि:जायइ णिविज्जदाणेण सत्तिगो कंतितेयसम्पण्णो । लावण्णजलहिलातरंगसंपावीपसरीरो॥
अर्थात्-जिन भगवान के आगे नैवेद्य के चढ़ाने से कान्ति मान. तेजस्वी, अपूर्व सामर्थ्य का धारक तथा लावण्य समुद्र की वेला के तरंगों के समान शरीर का धारक होता है । इसी विषय के विशेष देखने की इच्छा रखने वाले षट्कर्मोपदेश रत्नमाला नामक ग्रन्थ में देख सकते हैं।
दीप पूजन। दीप पूजन के सम्बन्ध में वसुनन्दि स्वामी का कहना है किःदीवहिं णियपदोहामियकतेएहिं धूमरहिएहिं । मंदमंदाणिलबसेण णञ्चतहिं अचणं कुज्जा ।। घणपडलकम्मणिचयव्वदूरमवसारियंधयारेहिं । जिणचरणकमल पुरओ वणिज रयणं मुभसिए।
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