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દ
संशयतिमिरप्रदीप |
रूप्य सुवण्णकंसाइथालणिहिएहिं विविह भरिएहि । पूयं वित्थारिज्जा भत्तिए जिणदपयपुरओ || अर्थात् दधि दूध और घी से मिले हुवे चावलों के भात से, शाक और व्यञ्जना से, तथा अनेक तरह के पक्वानों से भरे हुवे सुवर्ण, चांदी, कांसी आदि के थालों से जिन भगवान् के चरण कमलों के आगे पूजन करनी चाहिये ।
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श्री धर्मसंग्रह श्रावकाचार में:केवलज्ञानपूजायां पूजितं यदनेकधा । चारुभिश्वरुभिर्जेन पादपीठं विभूषये ॥
अर्थात् - केवल ज्ञान समय की पूजन में अनेक प्रकार से धूजन किये गये जिन भगवान् के चरण सरोजों को मनोहर व्यञ्जनादि नैवेद्यां से विभूषित करता हूं।
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श्री इन्द्रनन्दि पूजासार मैं:
ॐ क्षीरशर्करामायं दधिप्राज्याज्य संस्कृतम् । सानाय्यं शुद्धपात्रस्थं प्रोत्क्षिपामि जिनेशिनः ॥
अर्थात् - दूध शर्करादि मधुर पदार्थों से युक्त, दधि से बनाये हुवे अतिशय पवित्र नैवेद्य को जिन भगवान् के चरणां के आगे स्थापित करता हूं ।
श्री वसुनन्दि प्रतिष्ठासार में:
स्वर्णादिपात्र विन्यस्तं हरमनोहारि सद्रसम् । विस्तारयापि साभाग्यमग्रतो जिनपादयोः ||
अर्थात् - सुवर्ण चांदी रत्नादिकों के पात्रों में रखे हुवे,
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