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संशयतिमिरप्रदीप।
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लिये गन्ध लेपन नतो सरागता का द्योतक है और न उसके लगने से प्रतिमायें अपज्य होती हैं । जो लोग इस विषय के सम्बन्ध में दोष देते हैं वह शास्त्रानुसार नहीं है इसलिये प्रमाण भी नहीं माना जा सकता। प्रश्न-पद्मनन्दि पच्चीसो में लेपन के स्थान में आश्रय पद
का प्रयोग किया गया है। परन्तु आश्रय पद के प्र.
योग से लेपन अर्थ नहीं हो सकता। उत्तर-यदि आश्रय पद कालेपन अर्थ हम अपने मनोनुकूल
करते तो तुम्हारा कहना ठोक भी था। परन्तु जब कोषादिकों में भी यही अर्थ मिलता है तो, वह अप्रमाण नहीं हो सकता। दूसरे उस श्लोक की रीका में स्पष्ट लिखा हुआ है कि इस पद से लेपन लगाना चाहिये। फिर उसे हम अप्रमाण कैसे कह
सकते हैं ? श्री पंडित शुभशोल, अनेकार्थ संग्रह कोष में विलेपन शब्द की जगह और भी कितने प्रयोग लिखते है:विलेपने चर्चनचर्चिते च
समाश्रयाऽऽलंभनसंश्रयाश्च । समापनं प्रापणमाप्तिरीसा
लब्धिः समालब्धिरथोपलब्धिः ॥ अर्थात् -चर्चन, चचित, समाश्रय, पालंभन, संश्चय, समापन, प्रापणा, प्राप्ति, ईप्सा, लब्धि, समालधि और उपलब्धि इन प्रयागों को विलेपन अर्थ को जगह लिखना चाहिये ।
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