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संशयतिमिरप्रदीप । का है वह समोचीन नहीं है । इसलिये अन्तिम कहना यह
कि:सूक्ष्म जिनोदितं तत्वं हेतुभि व हन्यते । आज्ञासिद्धच्च तद्ग्राह्यं नान्यथा वादिनो जिनाः॥
अर्थात्-बुद्धि के मन्द होने से कोई बात हमारो समझ में न पावे तो उसे अप्रमाण नहीं कहनी चाहिये। किन्तु जिन भगवान् अन्यथा करनेवाले नहीं हैं। इसलिये उसे पाना के भनुसार ग्रहण करनी चाहिये।
पुष्प पूजन
पुष्यपूजन तथा गन्धलेपन का प्रायः एकही विषय है। जिस तरह जिन भगवान के चरणों पर गन्धलेपन किया जाता है उसो तरह पुष्पों को भी चरणों पर चढ़ाने पड़ते हैं। कितनौशंकापों का समाधान गन्ध लेपन के लेख में हो सकेगा। इसलिये इस लेख में विषेश वातों को न लिख कर पावश्यकोय बात लिखे देते हैं। पुष्प पूजन से हमारा असलो अभिप्राय चरणों पर चढ़ाने का है। परन्तु इसके पहले संचित पुष्पों को चढ़ाने चाहिये या नहीं ? इस प्रश्न का समाधान करना ज़रूरी है । यही कारण है कि कितने लोग तो इस समय भी प्रायः मचित्त पुष्यों से पूजन करते हैं और कितने चावलों को कैशर के रंग में रंग कर उन्हें पुष्य पूजन की जगह काम में लाते हैं। यह सम्प्रदाय योग्य है या अयोग्य, इस विषय का समाधान इसी अन्य के “ पुष्प कल्पना" नामक
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