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संशयतिमिरप्रदीप।
प्रश्न-ट्रव्य, क्षेत्र, काल, भावादिकों का यह मतलब नहीं है।
किन्तु पुष्पादिकी के चढ़ाने में हिंसादि दोष देखे जाते हैं और हमारा धर्म है पहिमा मयो । फिर तुम्ही कहो कि इस विषगेत प्रहति को देखकर और लोग कितना
उपहाम करेंगे ! उत्तर--द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावादिकों का यह अर्थ ठीक नहीं है।
पुष्पाटिकों के चढ़ाने में पहले तो हिंसा होती ही नहीं
कोकि :भावो हि पुण्याय मतः शुभः पायाय चाशुभः ।
अर्थात- शुभ परिणामों मे पुण्य का बंध होता है और खोटे परिणामों से पाप का बन्ध होता है । इमलिये भावों को पाप कार्यों की ओर से बचाये रखना चाहिये । कहने का तात्पर्य यह है कि जिन मन्दिरादिकों के बनवाने में तथा प्रतिठादि कार्यों के कराने में प्रायः हिंसा का प्राचुर्य देखा जाता है परन्तु उन्हें अत्यन्त पुण्य के कारण होने में हिंसा के हेतु नहीं मान सकते । मुनि लोग बहुत सावधानता से ईर्या समिति पूर्वक गमन करते हैं उनके पावों के नीचे यदि कहीं से जन्तु पाकर हत जीवित होजाय तो भी वे दोष के भागी नहीं कहे जा सकते। उसो सरह पुष्पों के चढ़ाने में यनाचार करते सवे भी यदि देव गति से किसी प्राणि का घान हो जाय तो भो वह दोष का कारण नहीं कहा जा सकता। जैन मत में परिणामों की सबसे पहले दरजे में गणना है। इसका भी यही तात्पर्य है कि कोई काम हो वह परिणामों के अनुसार फल का देने वाला होता है। जो जिन भगवान् को पूजन पवित्र
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