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संशय तिमिरप्रदीप |
उत्तर - वसुनन्दि संहिता तथा एकसन्धि संहिता में महर्षियों
या
ने जो कुछ लिखा है वह ठीक है । क्योंकि शाखों के विरुद्ध चलनेवालों को केवल वसुनन्दि स्वामी हो बुरा नहीं लिखते हैं किन्तु सम्पूर्ण महर्षि लोग, सम्पूर्ण लोक समाज बुरा बताते हैं । यही कारण है कि भाज सत्यार्थ मत के प्रतिकूल चलने से श्वेताम्बर, बौद्ध, पनीय आदि मतों को हमारे शास्त्रों में मिथ्यात्व के कारण बताये हैं । क्या इस बात को कोई अस्वीकार करेगा कि उक्तमत जैन मुनियों के द्वारा नहीं चलाये गये हैं। मान लिया जाय, कि जो लोग अपने पदस्थ से भ्रष्ट हवे हैं उन्होंने इन मतों को चलाये हैं । अब उन्हें जैन मह के अनुयायी नहीं कहना चाहिये । अस्तु हम भी इस बात को स्वीकार करते हैं । परन्तु पीछे से वे कुछ भी हो जांघ उस से हमारा कुछ मतलब नहीं । प्रयोजन केवल इसी बात से है कि वे लोग पहले जैन मत के सच्चे अनुयायी थे । परन्तु फिर विरुद्ध होने से उन्हें महर्षि लोग बुरा कहने लगे। उसी तरह जब गन्ध लेपन को शास्त्रों में आज्ञा मिलती है फिर उसके निषेध करनेवालों को यदि जिनाजा के भङ्ग करनेवाले कहें तो कौनसी हानि है । यह मेरा लिखना बसुनन्द स्वामि आदि के श्लोकों को लेकर नहीं है क्योंकि उस समय में तो, ऐसे मत का अंश भी नहीं था । किन्तु सोक प्रवृत्ति को देख कर लिखा है । कदाचित् कहो कि फिर बसुनन्दि स्वामी के इस तरह निषेध करने का क्या अभिप्राय है ? क्योंकि किसी विषय का निषेध सो
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