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संशयतिमिरप्रदीप। ३१ ॐ चन्दनेन कपरमिश्रगोन सुगन्धिना। व्यालिम्पामो जिनस्याडो निलिम्पाधी
वरार्चितौ॥ अर्थात् -न्द्रादिकों से पूजनीय जिन भगवान् के चरण कमलों पर कप्पर से मिले हुवे और सुगन्धित, चन्दन से लेपन करते हैं। श्री धर्मकीर्ति कृत नन्दीश्वर पूजन में :कर्परकंकुमरसेन सुचन्दनेन
ये जैनपादयुगलं परिलेपयन्ति । तिष्ठन्ति ते भविजनाः सुसुगन्धगन्धा
दिव्याङ्गनापरिवृताः सततं वसन्ति ॥ अर्थात् - जो जिन भगवान् के चरण कमलों पर कपर, केधारादिकों के रस से मिले हुवे सुगन्धित चन्दन का लेपकर. ते हैं वे भव्य पुरुष निरन्तर देवाङ्गनाओं से वेष्टित होते हुये स्वर्ग में निवास करते हैं। पूजा सार में कहा है :-- ब्रह्मनोऽथवा गोनो वा तस्करः सर्वपापकृत् । जिनाङ्गिन्धसर्पकान्मुक्तो भवति तत्क्षणम्॥ अर्थात्-ब्रह्म हत्या को किये हुवे हो, गाय का घात किया हो, अथवा चौर हो, ये भी दूर रहे, किन्तु सम्पूर्ण पापों काकरने वाला भी क्यों न हो, जिन भगवान के चरणों के गन्ध
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