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संशयतिमिरप्रदीप।
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भगवान् उमास्वामी कृत श्रावकाचार में :
प्रभाते घनसारस्य पूजा कोर्या जिनेशिनाम् । तथा :चन्देन विना नैव पूजां कुर्यात्कदाचन ।
अर्थात्-प्रातःकाल में जिन भगवान् को घनसार से पूजन करनी चाहिये । तथा पूजक पुरुष को योग्य है कि पूजन चन्दन के विना कभी नहीं करे । खुलासा यों है कि जिन भगवान की पूजन प्रात:काल में धनसार से, करने का उपदेश है। मध्याह काल में पुष्यों से, और संध्या समय में दीपक से । परन्तु विशेष इतना है कि इन तीनों समय में चन्दन पूर्वक पूजन करनी चाहिये। भाव संग्रह में श्री वामदेव महाराज लिखते हैं :चंदणसुगंधलेओ जिणवरचलणेसु
कुणदू जो भविभो। लहदू तणु विकिरियं सहावस
सुअंधयं विमलं ॥ अर्थात्-लो भव्य पुरुष जिन भगवान के चरणों पर सुगंध चन्दन का लेप करते हैं वे स्वाभाविक सुगंध मय, निर्मल पोर वैक्रियक शरीर को धारण करते हैं।
श्री वसुनन्दि श्रावकाचार में :कप्यूरकंकुमायरुतमक्कमिस्मेण चंदणरसेण। वरबहुलपरिमलामोयवासियासासमूहण ॥
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