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संशयतिमिरप्रदीप।
नहीं ठहर सकता । क्योंकि समवशरण में तो जलाभिषेक भी नहीं होता फिर प्रतिमाओं पर भी निषेध स्वीकार करना पड़ेगा । पञ्चामृताभिषेक को सरागता का कारण भी नहीं मान सकते । क्योंकि जब जिन मंदिर बंधवाना, रथयात्रा निकलवाना, प्रतिष्ठादि करवानी चादि कार्य सरागता के कारण नहीं है फिर पञ्चामृताभिषेक ही क्यों ! जिस तरह ये सरागता के पूर्णतया कारण होने पर भी प्रभावना के कारण माने जाते हैं उसो तरह पञ्चामृताभिषेक को मानने में जिन मत के उद्देश को किसी तरह बाधा नहीं पहुंच सकती। पभिषेक सम्बन्ध में श्री सोमदेव खोमो के वाक्य को देखिये
श्री केतनंवाग्वनितानिवास पुपयार्जनक्षेत्रमुपासकानाम् । वर्गापवर्गे गमनैकहेतुं जिमाभिषेकं श्रयमाश्रयामि ॥ प्रश्न- मूलाचार प्रभृति ग्रन्थों में साधुपुरुषों के लिये गन्धजल से
शरीर संस्कारादिकों का भी निषेध है तो प्रतिमाओं पर पञ्चामृताभिषेक कैसे सिद्ध हो सकेगा ? क्योंकि प्रतिमा भी तो पञ्चपरमेष्ठी की है।
उत्तर-प्रतिमाओं और मुनियों के कथन को समानता नहीं
होती। इतने पर भी यदि पञ्चामृताभिषेक अनुचित समझा जाय तो, मुनियों के स्नान का त्याग है फिर प्रतिमाओं पर अभिषेक क्योकर सिद्ध हो सकेगा ? यदि करो कि मुनियों को प्रस्पर्श शूद्रादिकी का स्पर्श होने पर मंत्रमान लिखा है तो क्या प्रतिमा को भी प्रायचित्त की आवश्यता पड़ती है जो तुम्हारे
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