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संशयतिमिरप्रदीप ।
समूह में पूजन के सम्बन्ध से उत्पन्न हुषा किंचित पाप का लव दोष का कारण नहीं हो सकता।
प्रश्न-पञ्चामृताभिषेक सम्बन्ध के लोक शास्त्रों में किसी
ने मिला दिये हैं। और पञ्चामताभिषेकादि सम्बन्ध के प्रन्यों को भट्टारकों ने प्राचीन महर्षियों के नाम
से बनादिये हैं। वास्तव में प्राचार्यों के नहीं हैं। उत्तर-यह बात कैसे ठीक मानी जाय कि इस विषय के
श्लोकों को किसी ने मिला दिये हैं? क्योंकि परीक्षा प्रधा. नियों के मतानुसार ऐसा सत्य भी मान लिया जाय तो किसी किसो स्थानों के शास्त्रों में साध्य भी हो सकता है। परन्तु भारतवर्ष मात्र के स्थानों में यह बात संभव नहीं होती और न कोई बुद्धिमान इसे स्वीकार ही करेगा। पञ्चामृताभिषेक का वर्णन एक शास्त्र में नहीं, दो में नहीं, दश में नहीं, पचास में नहीं सौ में नहीं किन्तु प्रत्येक पूजापाठ, श्रावकाचार, प्रतिष्ठा पाठ, संहिता शास्त्र, त्रैवर्णिकाचार, कथाकोपादि जितने ग्रन्थ हैं उन सब में है। फिर पञ्चामृता भिषेक कैसे अनुचित है यह मालम नहीं पड़ता। हां एक कारण इसके निषेध का कहा भो जासकता है। वह यह है। अर्थात् जो बात जो विषय अपने अनुकूल हुआ उसे विनय को दृष्टि से देखा और जो ध्यान में नहीं जचा उसे प्राचीन होने पर भो अनुपयोगी समझा । इसको छोड़ कर दूसरा कारण अनुभव में नहीं आता। यदि यह ठीक न होता तो जिस
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