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संशयतिमिरप्रदीप।
तरह गन्धलेपनादिकों को भी कहना किसी प्रकार
अनुचित नहीं कहा जा सकता। उत्तर-इस बात को कोम नहीं कहेगा कि मामंडलादिकों का
प्रतिमाओं से स्पर्श नहीं होता है । परन्तु हां केवल इसना फर्क अवश्य देखा जाता है कि गन्धपुष्पादिकों का सम्बन्ध चरणों से होता है और भामंडलादिकी का पीठादिकों से । केवल इतने फर्क से स्पर्श ही नहीं होता यह कोई नहीं कह सकता। इतने पर भी प्रकलंकखामि के विषय को उठाकर दोष देना अयोग्य नहीं है क्या ? अस्तु । यदि अकलंकदेव के विशेष कार्य को उदाहरण बना कर निषेध किया जाय तो भो तो निराबाध नहीं ठहर सकता। इस बात को सब कोड जानते हैं कि जिन भगवान् के अभिषेक के बाद उनका मार्जन करने के लिये हाथर दो दो हाथ कपड़े की जरूरत पड़ती है। ज़रूरत ही नहीं पड़तो, किन्तु उसके बिना काम ही नहीं चलता। फिर उस समय प्रतिमाएं पूज्य र गो? अथवा अपूज्य ? यदि कहोगे पूज्य ही बनी रहेंगी नो जिस तरह वस्त्र का सम्बन्ध रहने से प्रतिमायें पूज्य बनी रहती हैं उसी तरह शास्त्रानुसार गन्धपुष्पादिकों के चढ़ने से भी किसी तरह पूज्यत्व में बाधा नहीं पा सकती। कदाचित् किसी कारण विशेष के प्रतिबन्ध में यह बात ध्यान में न आवे तो मैं नहीं कह सकता कि उसको उल्टो युक्ति को कोई स्वीकार
करेगा? प्रश्न-माना हमने कि कपड़े का लगाना एक तर प्रतिमा.
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