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संशयतिमिरप्रदीप।
वह पञ्चामृताभिषेक की अपेक्षा कितना है। प्रारंभ के त्यागका उपदेश तो मुनियों के लिये है। एहस्थों को प्रारंभ कम करना चाहिये, नहीं कह सकते यह कहना किस शास्त्र के आधार पर है। अभिषेकादि सम्बन्ध में आरंभ घटाने का उपदेश करने वालों के प्रति
श्रोयोगीन्द्र देव कृत शावकाचार में लिखा हैप्रारंभ जिणएहावियए सावज्ज भणंति दंसणं तेण । जिमडलियो इच्छण कांइओ भंति॥
और भी सारसंग्रह में:জিলামি লিলসনিষ্টাজিনাই নানা सावद्यलेशो वदते स पापो स निन्दको दर्शनघातकश्च ।
तात्पर्य यह है कि अभिषेकादि सम्बन्ध में जो लोग आरंभादि बताकर निषेध करने वाले हैं उन्हें ग्रन्थकारों ने सर्व दोषों का पात्र बनाया है। और है भी ठीक क्योंकि जिसके करने से प्रात्मकल्याण होता है उसका निषेध कहां तक ठोक कहा जा सकेगा ? किन्तु आरंभ किस विषय का कम करना चाहिये उसके लिये धर्म संग्रह में इस तरह लिखा है:
जिमार्चानेकजन्मोत्यं किल्विषं हन्ति या कृता। मा किन यजनाचारभवं सावदा मङ्गिनाम् । प्रेरयन्ते यत्र वतिन दन्तिनः पर्वतोपमाः । तत्राल्पशक्तितेजस्सु दंशकादिषु का कथा । भुक्तं स्यात्प्राणनाशाय विषं केवलमङ्गिनाम् । जीवनाय मरीचाादिसदोषविमिश्रतम् ॥
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