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संशयतिमिरप्रदीप। श्रीपाल चरित्र में लिखा है किः
कृत्वा पञ्चामतैनित्यमभिषेक जिनेशिनामू
ये भव्याः पूजयन्युच्चै स्ते पूज्यन्ते सुरादिभिः । अर्थात् पञ्चामृत से जिन भगवान् का अभिषेक करके नो भव्यपुरुष पूजन करते हैं उन्हें देवता लोग निरन्तर उपासना को दृष्टि से देखते रहते हैं।
श्री मूलसंधानायो हरिवंश पुराण में:---
पञ्चामृतभृतैः कुम्भेगन्धोद कवरैः शनैः ।
संस्नाप्य जिनसन्मूर्ति विधिनाऽऽनचुरुत्तमाः॥ अर्थात्-इक्षुरसादि पञ्चामृतों से भरे हुये कलयों में जिन भगवान का अभिषेक करके पूजन करते हुवे ।
षटकर्मोपदेश रत्नमाला में:
पञ्चामृतैः सुमंत्रण मंत्रितैत्रिनिर्भरः
अभिषिच्य जिनेन्द्राणां प्रतिबिम्बानि पुण्यवान् । अर्थात् - पवित्र मंत्र पूर्वक, इत्रमादि पञ्चामृतों से जिन भगवान का अभिषेक करना चाहिये । इत्यादि अनेक प्राचीन शाखों में पञ्चामृताभिषेक के सम्बन्ध में लिखा हुआ मिलता है इसलिये शास्त्रानुसार बाधित नहीं कहा जा सकता।
प्रत्र-यद्यपि शास्त्रों में पञ्चामृताभिषेक करना लिखा है परन्तु
साथ ही जरा बुद्धि पर भी जोर देना चाहिये । इस बात
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