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संशय तिमिरप्रदीप |
कदाचित् कहो कि अन्त में जलाभिषेक के होने से उक्त दोष को निवृत्ति हो सकेगी ? परन्तु तो भी यह संभव नहीं होता कि घृतादिकों को सचिक्कणता तत्काल जल से दूर हो जाय गी। इत्यादि
केवल इसी युक्ति के आधार पर पञ्चामृताभिषेक के निषेध करने को कोई ठौक नहीं कह सकता। यह युक्ति तो तभो ठोक कही जाती जब पञ्चामृताभिषेक करने वाले इक्षुरसादिकों से अभिषेक करके ही अभिषेक कर्म की समाप्ति कर देते । सो तो कहीं पर भी देखा नहीं जाता । श्रव रद्दी सचिक्कणता की, सो इसका समाधान भीहो सकता है। प्रत्यकारों ने जहां इक्षुरसादिकों से अभिषेक करना लिखा है वहीं पर नाना प्रकार के वृक्षादिकों के रसी तथा दधि आदि प्राम्ल पदार्थों से भो करना लिख दिया है और जहां तक मैं खयाल करता उपर्युक्त वस्तुओं से अभिषेक करने का यही आशय है कि प्रतिमात्र पर सचिक्कणता अथवा मधुर पदार्थों का संसर्ग न रहने पावे । इस विषय का विशेष खुलासा इन्द्रनन्दि पूजासार में देख सकते हैं ।
पञ्चामृताभिषेक का नतो पहली युक्ति के आधार पर निषेध हो सकता है और न दूसरी युक्ति के द्वारा करना सिद्ध होता है । क्योंकि ये दोनों ही युक्तियें निराधार हैं। ये तो जिस तरह निषेध की कल्पना है उसी तरह उसका समाधान है । किसी बात के निषेध अथवा विधान में केवल युक्तियों की प्रबलता ठीक नहीं कही जा सकती। युक्ति के साथ कुछ शास्त्र प्रमाण भी होने चाहिये । यदि केवल युक्तियों को आधार पर विश्वास करके शास्त्रों के प्रचार का विल्कुल निषेध कर दिया
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