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संशयतिमिरप्रदीप।
पूजन के भी द्रव्यपूजन और भावपूजन ऐसे दो विकल्प हैं। उसमें आज यहां पर भावपूजन के विषय को गौण करके द्रव्यपूजन के विषय पर मौमांसा करेंगे। वैसे तो पूजन भनेक तरह और भनेक द्रव्यों से हो सकती है परन्तु मुख्यतः जलादि पाठ द्रव्यों से करने का उपदेश है। काल के परिवर्तन से अनियों में प्राचीन संस्कृत विद्या की कमी हो गई इसी कारण कितनी क्रियाओं में फेरफार हो गया है। इसीलिये पाज इस विषय के लिखने को जरूरत पड़ी है। हम इस लेख में क्रम से इस विषय का परिचय करावेंगे कि वर्तमान में किन २ क्रियाओं में अन्तर हो गया है जिन का पुनरुद्धार होने से जिन मत के यथार्थ उपदेश का पालन हो सकेगा।
पञ्चामृताभिषेक ।
पञ्चामृताभिषेक को सशास्त्र होने पर भी कितने लोगों का मत एक नहीं मिलता। कितनों का कहना है कि पञ्चामृताभिषेक के करने से जलाभिषेक को अपेक्षा कुछ अधिक लाम संभव होता तो ठोक भी था परन्तु यह न देख कर उल्टो हानि को संभावना देखो जाती है। इसलिये पञ्चामता भिषेक योग्य नहीं है।
पञ्चामृताभिषेक में इक्षुरसादि मधुर वस्तुएं भी मिली रहती हैं और जब उन्ही मधुर वस्तुओं से जिन प्रतिमाओं का अभिषेक किया जायगा फिर यह कैसे नहीं कहा जा सकता कि मधुर पदार्थों के संसर्ग से जीवों की उत्यत्ति न होगी !
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