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संसयति मिरप्रदीप |
इस प्रकार ये पन्द्रह प्रश्न किये हैं। पाठक ! हम अपनी मन्द बुद्धि के अनुसार जितना कुछ हो सकेगा उतना उत्तर तो शास्त्रानुकूल लिखे ही देते हैं। अत: पर भी यदि कुछ त्रुटि रह जाय अथवा आपके समझ में न आवे तो विशेष बुद्धिमानों से निर्णय करना चाहिये। क्योंकि – “सर्वः सर्वं नहि जानाति " यही प्रार्थना मित्र महोदय से भी है ।
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ग्रन्थकार -
उदयलाल जैन काशलीवाल.