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संशयतिमिरप्रदोप।
सकेगी वह विदिशाओं में पूजन करने से नहीं हो सकती। इसी लिये समवसरण में इन्द्रादिदेव भगवान के सन्मुख रहकर पूजनादिक करते है फिर यदि हम लोग भी
उन्हीं का अनुकरण करें तो क्या हानि है ? (७) रात्रि के समय भगवान की पूजन करने को ठीक कहते
हो क्या? यह तो जिन धर्म में प्रत्यक्ष दोषास्पद है। जिन धर्म का सिद्धान्त “अहिंसा परमो धर्मः" है और रात्रि में पूजन करने वालो को इसका विचार रह
सकेगा क्या? (८) जैनशास्त्र जिन भगवान को छोड़ कर अन्य देवी देव
ताओं को मिथ्यात्वी बतलाते हैं और साथ ही उनके पूजन विधानादिकों का निषेध करते हैं। फिर अन्यत्र तो दूर रहा किन्तु खास जिन मन्दिर में जिन भगवान के समीप पद्मावती, चक्रेश्वरी, क्षेत्रपाल और मानभद्र आदि की स्थापना और पूजनादिक होना कितना अयोग्य है । अब तुम्हीं इस बात को कहो कि यह मिध्यात्व है या नहीं ? यदि है तो उसके दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये। यदि इसे भी मिथ्यात्व नहीं समझते हो तो कहो इससे भिन्न दूसरा मिथ्यात्व ही
क्या है ? (९) जिन धर्म में श्राद्ध करना योग्य माना है क्या? (१०) आचमन और तर्पण का विधान ता ब्राह्मण लोगों में
सुना है और उन्हें ही करते देखा है। परन्तु कहते हैं कि जैन धर्म में भी ये बातें पाई जाती हैं फिर यह ध्यान
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