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संशयतिमिरप्रदीप |
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एक मित्र महोदय के प्रश्न
इस ग्रन्थ की प्रथमावृत्ति के प्रकाशित होने पर कितने महानुभावों ने इसे ध्यान से देखा है और याथातथ्य लाभ भी उठाया है। इस से हम अपने पुरुषार्थ को किसी अंश में अच्छा ही समझते हैं और साथ ही उन लोगों के अत्यन्त आभारी हैं जिन्हों ने इस छोटी सी पुस्तक से लाभ उठाकर हमारे परिश्रम को सार्थक बनाने की चेष्टा की है। हमें यह आशा नहीं थी कि इस नवीन पुस्तक को समाज इतनी आदर की दृष्टि से देखेगा परन्तु परमात्मा की दयादृष्टि से एक तरह हमारा मनोरथ पूर्ण हुआ ही। यही कारण है कि आज हमारा रोम २ विकसित हो रहा है और उत्साह की मात्रा द्विगुणित होती जाती है। इस ग्रन्थ के अवलोकन करने का हमारे एक मित्र महोदय को भी मौका मिला है। उन्होंने इस पुस्तक के लेख पर सन्तोष प्रगट करते हुवे साथ ही कुछ और भी प्रश्नों को लिख कर हमारे ऊपर दयादृष्टि की है। वे प्रश्न प्रायः इसी ग्रन्थ से सम्बन्ध रखते हैं। उन्हें सर्वोपयोगी होने से पृथक उत्तर न देकर इसी पुस्तक में प्रकाशित किये देते हैं । मित्र महोदय उत्तर को देख कर अपने सन्देह के दूर करने का प्रयत्न करेंगे ऐसी मेरी प्रार्थना है। इसी जगह यह भी प्रगट कर देना अनुfar न होगा कि यदि किसी सज्जन महाशय को इस पुस्तक के देखने पर जो कुछ सन्दह हो तो वे उसे मेरे पास भेजने की अनुग्रह बुद्धि करेंगे । ऐसे पुरुषों का अत्यन्त आभार
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