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प्राकृत व्याकरणम् ★
चतुर्थपाद:
गढ, प्रदेश के प्रभाव पक्ष में- घड ( वह बनाता है) यह रूप बनता है ।
७८४ - सम् उपसर्ग पूर्वक घटि धातु के स्थान में 'गल' यह प्रदेश विकल्प से होता है। जैसेसंघटते संगलद प्रादेश के प्रभाव में संघ (वह मिलाता है) यह रूप बनता है ।
७८५---हासकरणक (मुस्कराना, हंसना इस अर्थ के बोधक या हास्यहेतुक) स्फुटिधातु के स्थान में 'मर' यह मादेश विकल्प से होता है। जैसे--हासेन स्फुटति मुरड (वह हंसी के कारण प्रसन्न होता है) यहाँ हास्य-बोधक स्फुटिधातु के स्थान में पुर' यह आदेश किया गया है।
७८६ -- मडिधातु के स्थान में - १ - विञ्च, २ - विञ्च ३ - चिचिल, ४- रीड और ५- टिविडिवs ये पांच प्रदेश विकल्प से होते हैं। जैसे मण्डति चिञ्चद, विश्वमइ, चिचिल्लक, Rise, fafafears प्रदेशों के प्रभावपक्ष में मण्डड (वह मण्डित करता है), ऐसा रूप बनता है ।
-कुड, ६-उ
७८७- तुडिधातु के स्थान में - १- तोड, २ तुट्ट, ३ – खुट्ट, ४- खुड, ५ल्लुक्क, ७--- णिलुक्क, ८ - लुक्क और उल्लूर ये नव मादेश विकल्प से होते हैं । जैसे तुडति तो, इ, खुट्टइ, खुड, उखु, उल्लुक्कद, जिल्लुक्कड, लुक्कर, उल्लूरह प्रदेशों के प्रभावपक्ष मैं तुडइ ( वह तोड़ता है), ऐसा रूप बनता है ।
७८८-- घूर्ण धातु के स्थान में - १ - घुल, २ घोल, ३-धुम्म र ४ -पहल ये चार प्रदेश होते हैं । जैसे--- घूरते --- घुलद, घोलइ, घुम्मइ, पहल्लइ ( वह भ्रमण करता है) यहां पर घूर्ण धातु के स्थान में धुल आदि चार आदेश किए गए हैं।
७६६-त्रि उपसर्ग पूर्वक वृति धातु के स्थान में 'हंस' यह प्रदेश विकल्प से होता है। जैसे - विवर्तसे हंस श्रादेश के प्रभाव पक्ष में विवइ (वह घसता है, गिरता है। यह रूप होता है । ७६०क्वथि धातु के स्थान में 'अट्ट' यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे- स्वयति: इ प्रदेश के अभावपक्ष में कहर ( वह पकाता है) यह रूप बन जाता है।
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प्रथ्नाति == गण्ठइ ( वह श्रादेश किया गया है।
७९१-ग्रन्थि धातु के स्थान में 'गण्ड' यह श्रादेश होता है। जैसे- १ पुस्तक बनाता है), २- पन्थिः गण्ठी (माठ) यहां 'ग्रन्थि' धातु को 'गण्ट' यह ७९२ - मन्यधातु के स्थान में घुसल धौर विरोल ये दो श्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे - म नाति घुसलाइ, विरोद श्रादेश के प्रभावपक्ष में-मन्थह ( वह मयता है) यह रूप बनता है ।
७६३ - व्यन्त और प्रयन्त ( जिस वातु के अन्त में णि नहीं है) ह्लादि धातु के स्थान में 'प्रवच्छ' यह प्रदेश होता है। जैसे- ह्लाबसे, ह्लावयति ग्रवग्रच्छद वह मानन्दित होता है) यहाँ पर 'ह्लाद' धातु को अवच्छ' यह आदेश किया गया है। वृतिकार फरमाते हैं कि 'लावे:' इस पद में पति इकार के ग्रहण से व्यन्त ( णि है धन्त में जिसके ) धातु का ग्रहण भी किया जाता है। ७९४ ---नि उपसर्ग पूर्वक सद् धातु के स्थान में 'मज्ज' यह प्रदेश होता है । जैसे - आत्मात्र नीति प्रत्ता एत्थ मज्जद (आत्मा यहां पर बैठती है) यहां पर नि उपसर्ग पूर्वक सद् धातु स्थान में 'मज्ज' यह यादेश किया गया है।
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७६५ - छिदि धातु के स्थान में - १ - बुहाव, २- जिच्छल्ल, ३ रिगज्झोड, ४---विम्वर ५ गिल्लूर और ६-लूर ये ६ प्रदेश विकल्प से होते हैं। जैसे- छिनति - दुहावद्द, छिल्लर, णिज्भोss, froवरद, पिल्लूर, सूरइ, प्रदेशों के प्रभावपक्ष में छिन्द ( वह खण्डित करता है) यह रूप होता है ।