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राणWARLD.
२२८ * प्राकृत-व्याकरणम् *
चतुर्थपादा यहां पर-स्वया तई (तुझ से) इस पद में हा-प्रत्यय के साथ युष्मद शब्द के स्थान में 'सई' यह प्रादेश किया गया है। डि-प्रत्यय का सा
स्वयि मयि द्वयोरपि रगतयोः को जयधिध तर्कयति?।
केशः लास्था यमपुहिणी भण सुखं स्तिष्ठति ॥३॥ अर्थात-तेरे और मेरे इस तरह दोनों के रण-युद्ध में जाने पर विजयलक्ष्मी में कौन सन्देह कर सकता है ? भाव यह है कि विजय-लक्ष्मी को हम अवश्य प्राप्त करेंगे, क्योंकि यमराज की गृहिणी को केशों से पकड़ने वाला कौन सुख से रह सकता है ? प्रति कोई नहीं ।
__ यहाँ पर- स्वयि पई (तेरे) इस पद में डि-प्रत्यय के साथ युष्मद शब्द के स्थान में 'प" यह मादेश किया गया है। वृत्तिकार फरमाते हैं कि जैसे डि-प्रत्यय के साथ युष्मद् शब्द के स्थान में 'पई यह मादेश किया गया है, वैसे प्रस्तुस सत्र से होने वाले 'सह" इस दूसरे प्रदेश का उदाहरण भी समझ लेना चाहिए । अम्-प्रत्यय का उदाहरण
स्वां मुन्धस्याः मम मरणं, मा मुख्यतः तय ।
सारस ! यस्य यः पूरवर्ती, सोऽपि कृतान्तस्य सरथ्यः ।।४।। अर्थात--तुझ को छोडती हुई का मेरा मरण है, और मुझ को छोड़ते हुए का तेरा मरण है। हे सारस ! जो जिस के दूर है, वही मृत्यु के मुख में है।
यहां पर स्वाम् = पई (तुझ) को) इस पद में अम्-प्रत्यय के साथ युष्मद को पई यह मादेश किया गया है। पाई इस प्रादेश के समान ही सई" इस पादेश का उदाहरण भी समझ लेना चाहिए।
१०४२-अपन'श-भाषा में भिस्-प्रत्यय के साथ युष्मद शब्द के स्थान में तुम्हेहि यह प्रादेश होता है। जैसे
युष्माभिः अस्माभिः यत् कृतं दृष्टं बहक-आमेन ।
तत् तावत् समरभरः निजितः एक-सरणेन ||१|| अर्थात्-तुमने और हम में जो कुछ किया है, उसे बहुत से लोगों ने देखा है। वह इतना महान युद्ध एक क्षण में ही जीत लिया गया था।
यहाँ पर-युष्माभिः-तुम्हेkि (तुम में) इस पद में प्रस्तुत सूत्र से मिस्-प्रत्यय के साथ युष्मद 'शब्द के स्थान में 'तुम्हहि' यह आदेश किया गया है।
१०४३- अपभ्रंश भाषा में असि और छस् प्रत्यय के साथ युष्मद शब्द के स्थान में १-, २-तुझ और ३--तुभ्र ये तीन प्रादेश होते हैं । जैसे-१-वंद भवन आगतः-तउ होन्तउ प्रागदो, तुज्झ होन्तउ पागदो अथवा तुध होन्तत बागदो [तुझ से होता हुमा आ गया] यहां पर इसि-प्रस्थय के साथ युष्मद शब्द के स्थान में तादि तीन प्रदेश किए गए हैं । अस्-प्रत्यय का उदाहरण
तब गुणसम्पवं, तब मति, अनुसरा शान्तिम् ।
यदि उत्पत्या अम्पजनाः महीमण्डले शिक्षन्ते ॥१॥ ... .. .. . अर्थात्-हे प्रभो ! मही-मण्डल (जगत) में तेरी गुणसम्पत्ति, तेरी मति (बुद्धि) और तेरी .. अनुत्तरप्रधान शान्ति-क्षमा से यदि अन्य लोग जन्म से ही शिक्षा प्राप्त कर लेवें तो उनका अवश्य ही कल्याण हो जाए।
यहाँ पर १.तब-तउ, २-तप-तुझऔर ३-तब-तुन, इन पदों में उस-प्रत्यय के साथ