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चतुर्थपादः * मंस्कृत-हिन्दो-टीकाद्वयोपेतम् ★
३३३ एका कुटो पञ्चभिः द्धा, तेषां पचानामपि पृथक-पृथक बुद्धिः।
भगिनि ! तद् गृहं कथय, कथं नन्दतु पत्र कुटुम्बमात्मानन्धकम् ॥१२॥ अर्यात-कुटिया एक है, किन्तु पांचों ने उसे रोक रखा है, फिर इन पांचों की बुद्धि भी पृथक्पृथक् (अलग-अलग) है। हे बहिन ! तू ही बतला, उस घर की वृद्धि कैसे हो सकती है, जिस में रहने वाला कुटुम्ब स्वच्छन्द हो, स्वेच्छाचारी हो ? भाव यह है कि एकता को ही ऋद्धि, वृद्धि और सम्वृद्धि का मूल स्रोत समझना चाहिए। यहां पर 'पृथक-पृथक् इन पदों के स्थान में 'जुनं जुझ' यह प्रादेश किया गया है । संस्कृत-शब्दार्थ-कौस्तुभ नामक कोष में अद्भुतसार शब्द के अद्भुत राल, सर्जरस यक्षधूप ये अर्थ लिखे हैं । प्रस्तुत में इस शब्द का "जिस का सार [शक्ति या परिणाम] पद्भुत हो, प्राश्चर्य जनक हो" यही अर्थ प्रतीत होता है। १५-मूह (मूर्ख) शब्द के स्थान में किए गए 'नालिज और बढ इन दो आदेशों के बाहरण इस प्रकार हैं
यः पुमः मनस्येव व्याकूलीमूता चिन्तयति ववाति न अम्म म रूपकम् ।
रति-वश-भ्रमण-शीला कराग्रोल्लालितं गृहे एव कुन्त गुणयति स महः ।।१३॥ अर्थात-जो रुपया मोर द्रम्म [पैसा] दान तो नहीं करता है, किन्तु व्याकुल हो कर मन में ही चिन्तन करता रहता है, तथा जो रति [काम-क्रीडा, हर्ष, अनुराग] वश भ्रमणशील है, अर्थात् अमोद-प्रमोद के लिए सदा भ्रमण करता रहता है और घर में ही कुन्त [भाले] को हाथ में उछालता रहता है,वह पुरुष मूर्ख होता है । अथवा मूर्ख के चार लक्षण होते हैं। जैसे-१-जो हृदय में व्याकुलता रखकर सोचता रहता है । २-जो धन कमा कर मालिक को नहीं सौंपता है, स्वयं ही रख लेता है। ३-धनार्जन [धन करने में अशक्त होने पर भी काम-वासना के अधीन हो इधर-उधर भ्रमण करता है। और ४-घर में ही भाले को उछाल-उछाल कर अपने को वीर समझता है। यहां पर 'मत' शब्द के स्थान में नालिब' यह आदेश किया गया है। 'म' के स्थान में विहित 'बढ' इस मादेश का उदाहरणविवसः अजितम् खाद मत ! दिवे हि विढत्तउँ खाहि वढ ! [हे मूह ! दिनों से कमाए को खा, सेवन कर] यहां पर मुढ को 'वढ' यह प्रादेश किया गया है। १६-मव के स्थान में कृत 'नवख' इस प्रादेश का उदाहरण-नवा कापि विषधिः -नवखी क वि विस-गण्ठि [यह कोई नई विष की गाँठ है] यहां पर 'म' को 'नवख' यह पादेश किया गया है। १७-प्रवस्कन्द [प्राक्रमण, ऊपर से नीचे उतरने की क्रिया, छावनी] इस शब्द के स्थान में किए गए 'बजयः' इस प्रादेश का उदाहरण
पलाया खलमा लोचनाम्या थे श्वया दृष्टा बाले ।।
तेषु मकरध्वजावस्कन्दः पतति अपूरे काले ॥१४!! अर्थात्-हे बाले ! चञ्चल और वक्र नयनों द्वारा तू ने जिन्हें देख लिया है उन पर अपूर्णकाल में [समय से पहले ही] मकरध्वज [कामदेव का अवस्कन्द [आक्रमण] हो जाता है । यहाँ पर 'अबस्कन्द' के स्थान में 'बडबड' यह आदेश किया गया है । १५-यदि [अगर] के स्थान में किए गए छुड इस मादेश का उदाहरण-यदि राजते व्यवसाया- छुड़ अग्ध ववसाउ [अगर व्यवसाय-व्यापार सुन्दर चल रहा है] यहां पर 'यवि' के स्थान में 'छुड' यह प्रादेश किया गया है। १९-सम्बन्धी शब्द स्थान में किए गए केर और तण इन दो प्रादेशों के उदाहरण--
गतः स केसरी, पिबत जलं, निश्चिन्त हरिणा!। पस्य सम्बन्धिनाकारण, मुखेम्पः पतम्ति तृणानि ॥१५॥