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-Marava
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*प्राकत-व्याकरणम् *
बतुर्थपाश १११६ अपभ्रंश-भाषा में लिङ्ग प्रायः प्रतन्त्र व्यभिचारी] अर्थात् अनियत होता है । संस्कृत भाषा में जैसे रामः यह शब्द है । इस शब्द का नियतरूप से पुल्लिङ्ग में प्रयोग होता है। रमा शब्द का स्त्रीलिङ्ग में और जलम् शब्द का नियतरूप से नंपुसकलिङ्ग में प्रयोग किया जाता है, वैसे अपभ्रंश भाषा में राम आदि सभी शब्द प्रायः अनियत लिङ्ग वाले होते हैं, इन का कोई निश्चित लिङ्ग नहीं होता है। इस तरह अपभ्रश-भाषा-गत शब्दों का प्रायः सभो लिङ्गों में प्रयोग हो जाता है। जैसे-जान कुम्भान वारयन्तम् गयकुम्भई दारन्तु हाथियों के कुम्भों-मस्तकों को विदीर्ण करते हुए को] यहाँ पर पठित पुल्लिङ्गी कुम्भ शब्द का नपुसकलिङ्ग में प्रयोग किया गया है।
अाणि लग्नानि पर्वतेषु पथिकः रन् याति ।।
य एष गिरिगिलन मनाः सकि अन्याया घृणायते ? ॥१॥ प्रतिपर्वतों के साथ लगे हुए बादलों को देख कर कोई पथिक नाक्रन्दन करता हुमा जा रहा है, और यह कह रहा है कि जब ये बादल पर्वतों को ही निगल जाना चाहते हैं तो ये मेगे नायिका पर क्या अनुकम्पा करेंगे? यहां पर पठित नपुसकलिङ्गी-अभ्रम् इस शब्द का पुल्लिङ्ग में प्रयोग किया गया है।
पादे विलग्नमन्त्रं, शिरः सस्तं स्वस्थ ।
ततोऽपि कटारिकायां हस्ता, बलिः किये कान्तस्य ।।२।। ___ अर्थात-ौते पांव पर प्रा लगी हैं, और सिर कन्धे से लुढ़क गया है, तथापि इस का हाथ कटारी [तलवार] पर है, ऐसे कान्त के मैं बलिहार जाती है। यहाँ पर पठित अन्त्रम् मन्त्रडी [आंत] इस नमुसलिमी शब्द का स्त्रीलिङ्ग में प्रयोग किया गया है।
शिरसि आश्वाः खावन्ति फलानि पुनः शाखाः मोटयन्ति ।
ततोऽपि महामाः शकुनानामपराषितं न कुवन्ति ।।३।। अर्यात-पक्षी सिर (शिखर] पर चढ़ कर फलों को खा रहे हैं, और शाखामों को तोड़-मरोड, रहे हैं। तथापि महान वृक्ष इन पक्षियों को दण्ड नहीं देते हैं। परोपकारी होने से वक्ष अण्ड पक्षियों का भी बुरा नहीं करते। यहां पर पठित शाला:==डालई [टहनियों का] यह स्त्री-लिङ्गी शब्द नपुंसक लिङ्ग में प्रयुक्त किया गया है।
* अथ शौरसेनी-भाषा-सम्मान-विधिः * १११५–शौरसेनीवत् ।८४१४४६। अपभ्रशे प्रायः शौरमेनीवत् कार्य भवति । सीसि सेहरु खणु विणिम्मविदु, खणु कण्ठि पालंबु किदु रदिए। विहिवु खणु मुण्ड-मालिए जं पणएण,तं नमहु कुसुम-दाम-कोदण्ड कामहो ॥१॥
* अथ शौरसेनो-भाषा-समान-विधिः* शौरसेनो भाषायाः नियमाः ९३१ सूत्रादारभ्य १५६ सूत्रपर्यन्तं पूर्व भरिणताः सन्ति । तेषां शौरसेनोभाषा-नियमानामपभ्रशभाषायामपि प्रवृत्तिर्जायते । अपभ्रशभाषायां शौरसे नोभाषातल्यमपि कार्य भवतीति भावः । प्रस्तुते प्रकरणे इयमेव शौरसेनी-भाषायाः तुल्यता निरूप्यते वृत्तिकारेण । यथा--
१११७ --शौरसेनीवस । अपभ्रंशभाषायां प्रायः शौरसेनी-भाषा-सुल्यं कार्य जायते, शौरसेनी