Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Atmaram Jain Model School

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Page 416
________________ ३९९ mary -.--.nrrrrr- n - लिम्भ (लिहू.) ४२४५ लिस (स्वप्) ४१४६ लुक्क (नि० लीड्) ४/५५ . सुब्छ (मृज्) ४/१०५ लुण (लू) ४२४१ लुम (..) ४२४२ लह (मृज) ४१०५ सूर (छिद्) ४/१२४ सोट (स्वप) ४/१४६ लोट्ट (लुद) ४/२३० बागोल (रोमन्थ) ४/४३ वमन (काक्ष) ४११२ व, (ब) ४/२२५ .::...बाम (स)-४/११८ बम (दृश्! ४/१५१ वज्जर (कथ्)४/२ बडबड (वि० लूप)४/१४८ बद्ध (अर्ध | ४२२० धमाल (पुज) ४१०२ पम्फ (बल) ४/१४६ बम्फ (काइप) ४१५२ * संस्कृत-हिन्दी-टोकाद्वयोपेतम् * विषक (वि० कृ) ४/५२ बोसट्ट (वि० कस्) ४/१९५ विलोल (कम्पि) ४/४६ बोसिर (सृज्) ४/२२९ विधिड्ड (रच) ४/९४ साक (शक) ४/२३० विष्य (अर्ज) ४/२५१ सङ्खुड्ड (रम्) ४/१६८ विनय (,) ४१०५ सङ्घ (कथ्) ४/२ विप्पाल (नश्) ४/३१ सड (सद्) ४/२१९ विम्हर (वि० स्मृ) ४/७५ सन्दाख (क) ४/६७ . बिम्हर .)४/७४ सन्दुम (प्र० दीप) ४/१५२ . . विर (भ) ४/१०६ . कम्युक्त (प्र. बीप) ४/१५२ . . विर (गुप्) ४१५० - सन्नाम (भा दृङ) ४/५३ विरमाल (प्रति० ईक्ष्) ४१९३. सन्नुम (छद) ४२१ विरल (तन्) ४/१६७ . . समारण (मुज) ४११० विरा (विल लीङ्) ४/५६ समाग (सम्० प्राप४१४२ विशेल (मत्थ्) ४१२१ समार (समा० रच) ४/९५ विलुम्प (काझ्) ४११९२ . संभाव (लुम्) ४१५३ विलोट्ट (विसं बद) ४/१२२ संबेख (सं० वेष्ट्) ४/२२२ विसट्ट (दल्) ४/१७६ सलह (श्लाघ्) हा विसूर (खिद्) ४/१३२ सम्भव (दृश्) ४१५१ विहीर (प्रति० ईक्ष् ४१९३ विहोंड तड्) ४/२७ साङ्क (कृष्) ४/१५० वीस (निक स्मृ) ४/५५ सामन्ग (श्लिप) १९० बीसाल (मिश्र४/२५ सामय (प्रति.० ईक्ष) ४.१९३ घुम्भ (वह) ४१२४५ सार (प्र है।४/८४ वेअड (स्वच्) ४८९ सारथ (समा० रच्) ४/९५ वेढ (वेष्टा ४/२२१ साह (कथ) ४/२. बेमय (भ) ४१०६ साहट्ट (सं० ) ४/८२ बेलय (उपा० सम्भ) ४११५६ वेलव (बञ्च) ४/९३ सिन (खिद्) ४/२.२४ वेल्ल रम्) ४/१६८ सिक्झ (सिघ) ४/२१७...: :.. बेहव (वञ्च) ४/९३ सिध (सिच्) ४९६: ......... थोक (वि० शय्) ४.३० सिप्प (स्नेह सिच्) ४/२५५ ... वोच्छ (वच) ३/१७१ सिम्प (सिंच):४९.६ बोज (वी) ४५ सिन्ध (सिब) ४४२३० बोत् (वच्) ४२११ सिह (स्पृह).४/३४. योख (गम्) ४/१६२ सिंह (काम) ४११९२ • बल (माइ रोगि ४४.३ बल (निर् पद्) ४/१२८ बल (ग्रह)४/२०९ वलग (आइ सह.) ४/२०६ वसुआ (उद्० वा) ४११ का (म्ल) ४/१५ वायम्फ (कृ) ४/६८ घास (अव० का) ४१७९ बाह (, गाह) ४/२०५ पाहिप्य (व्या० ह) ४२५३ ।। विभट्ट (विसं० पद्) ४/१२९ विखद्ध (नश) ४३१

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