Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Atmaram Jain Model School

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Page 407
________________ प्राकृत-व्याकरणम् * तुपादः ★ अथ ग्रन्थकार द्वारा की गई प्रशस्ति ★ ग्रन्थ के निर्माता को ग्रन्थ कहते हैं। उसके द्वारा की गई प्रशस्ति को ग्रन्थत् प्रशस्ति कहा जाता है । प्रशस्ति शब्द "विरुदावली, विस्तृत यशोगान, प्रशंसा, किसी की प्रशंका में ली गई कविता, प्राचीन ग्रन्थ या पुस्तक का प्रादि और अन्त वाला वह अंश जिस से उस के रचयिता, काल, विषय श्रादि का ज्ञान होता है" आदि अर्थ होते हैं । ३९० प्रश्न हो सकता है कि प्राचार्य श्री हेमचन्द्र जी को हैमशब्दानुशासन नामक व्याकरण के नि off करने की आवश्यकता थी ? इस को इन्होंने अपनी इच्छा से ही लिखा है या इसके लिखने में किसी अन्य व्यक्ति की प्रेरणा रही हैं ? ग्रादि बातों का बोध कराते हुए आचार्य श्री हेमचन्द्र ग्रन्थकृत् प्रशस्ति में महाराजा जयहि देव "सिद्धराज" का प्रशंसा प्रधान परिचय कराते हुए फरमाते हैंव्यापारियों के नायक, चार समुद्रों की भूमि के शासन-गत भार को उठाने में समर्थ भुलादण्ड वाले, दुर्धर [ जिन्हें बड़ी कठिनता से वश में लाया जा सके] शत्रु रूपी हाथियों के लिये कण्ठीरवसिंह के समान और परम पवित्र लुक्य वंश भूषण श्री मूलराज नाम के भूपति थे ।। १३ । भूपति मूलराज के वंश में जयति देव के एक राजा हुए हैं। ये सूर्य के समान तेजस्वी थे । इनका वंश सूर्य की भाँति प्रकाशमान तथा चन्द्रमा की भाँति सौम्य एवं शान्त था । ये सूर्य तथा चन्द्र तुल्य वंश में 'सिद्धराज' इस उपाधि से विभूषित हो रहे थे ||२|| नरेश सिद्धराज चतुर [ प्रतिभा सम्पन्न ] व्यक्ति थे। १ - [स्त्र, भवान विद्या] २ [जिस विद्या के १ ऋग्वेद, २ यजुर्वेद और सामवेद ये तीन श्रवयव हों ], ३- वार्ता [जिम विद्या में कृषि, वाणिज्य, गोरक्षा मोर कुसीद के धंधे का वर्णन हो अथवा जिस में आजीविका के उपायों का वर्णन हो] और ४-नीति [जिस विद्या में न्यायविधान, नागरिक धर सैनिक शासनपद्धति, राजनीति और शामन-व्यवस्था का पर्याप्त वर्णन हो] इन चार विद्याओं के ज्ञानभण्डार थे, तथापि वे विनोत मति वाले थे । १- साम [शान्तिकरण, राजाओंों के लिए शत्रु को वश करने का सावशेष, २-बान [घुस, भेंट जिस से शत्रु की अपने में मिलाया जाता है ], ३मेद [जिस के द्वारा शत्रु और उसके मित्रों में परस्पर झगड़ा उत्पन्न कर दिया जाता है ] और ४ - [सजा, जुर्माना, याक्रमण, कारागृह-वास, शारीरिक दण्ड ] इन चर उपायों का अच्छी तरह सेवन करके इन्होंने चार समुद्र ही जिस की काञ्ची [ तड़ागी ] हो, ऐसी भूमि पर विजय प्राप्त की और उस का सानन्द उपभोग किया । श्रन्त में, ये धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की साधना में चरम सीमा प्राप्त करके जितात्मा [जितेन्द्रिय] बन गए || ३ | अति विस्तृत, दुरागम [दुर्बोध ] और विकीर्ण [ बिखरे हुए, प्रस्तव्यस्त ]] शब्दानुशासनों [व्याकरण ग्रन्थों, शास्त्रों] के समूह से मदति [ वेदखिन्न ] श्री सिद्धराज जयसिंहदेव ने विस्ताररहित, सुबोध श्री सुव्यवस्थित नूतन व्याकरण की रचना के लिए मुनि हेमचन्द्र [ कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्र ] से विनयपूर्वक प्रार्थना की। श्री सिद्धराज की इस प्रार्थना के कारण ही माचार्य श्री इन्द्र ने इस शब्दानुशासन [ व्याकरण] की विधिपूर्वक [ प्रणाली के साथ ] रचना सम्पन्न की। प्रथा शब्द का अर्थ है-ग्रन्थ का परिमाण हैमशब्दानुशासन में जो कुछ भी लिखा गया.... है, इसकी यदि पद्यरचना करने लगें तो इसका परिमाण लगभग ११८५ श्लोक बन सकते हैं। भा

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