Book Title: Prakrit Vyakaranam Part 2
Author(s): Hemchandracharya, Hemchandrasuri Acharya
Publisher: Atmaram Jain Model School

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Page 409
________________ Mrmonymnasty anemunnnnn * प्राकृत-व्याकरणम् * चतुर्थपादः मेरे ये गुडेव है, इन का ही आधार । मेनो जीवन-नाय के, घने यही पतबार !|१९| आज्ञा इन को पी हुई, मुझ को यह इक बार । प्राकृत भाषा को पढ़ो, इसका करो प्रकार ॥२०॥ पाशा पा गुरुदेव को, चरणों का कर ध्यान । प्राप्त किया फिर पल से, प्राकृत-भाषा ज्ञान ॥२१॥ हेमचन्द्र गुरुनात है, ज्येष्ठ बड़े विद्वान । प्राकृत, संस्कृत आदि का, इन को ज्ञान महान ।।२२।। पण्डित मेषाधान है, करते विद्यावान । न, सरल, गंभीर है. मिलनसार गुणवान ॥२३॥ माम बड़ा गम्भीर है। करसे पूरी शोष । मैं भी हम से हूं पढ़ा, पाया है कुछ बोध ॥२४॥ शमशास्त्र सब कठिन है, कहते थे विद्वान । प्रतिभाशाली छात्र भी, हो जाते हैरान 11२५॥ प्राकृत-भाषा-व्याकरण, यह भी कठिन महान । बिना सामग्री हो भला, कैसे इसका ज्ञान । ॥२६॥ मन में यह संकल्प मा, इस का हो अनुवाद । बिना कट के हो सके, छात्रों को यह यार ॥२७॥ वर्ष सहस बो, पांच[२००५]था,विक्रम का सुखकार । लुधियाना में कर रहे, गुरुवर थे उपकार ॥२८॥ गुरु-चरणों में बंट के, ले इन का प्राधार । व्याख्या फिर आरम्भ की, दिल में हर्ष पार ॥२६॥ एक वर्ष के मध्य में, हुमा अन्य तैयार | शोधन फिर होता रहा, जैसे मिले विचार ॥३०॥ टोकाएं हैं दो लिखीं, किया बहुत विस्तार । संस्कृत-दीका है बड़ी, हिन्दी में है सार ।।३१॥ मूलसूत्र के भाव का, हिदी से हो ज्ञान । शब-साधना इष्ट हो, संस्कृत से लो जान ||३२।। टीका मैं जो है लिखा, और किया अनुवाद । बन्दमोय गुरुदेव का, है यह सफल प्रसाद ॥३३।। मुखमा इसका शीघ्र हो, सबका था अरमान । किन्तु हुई मा कामना, पूर्ण हुमा व्यवधान ॥३४॥ दुष्कर्मों ने आन के, पाया ऐसा जाल । स्वर्ग-पुरी गुरु चल दिए, काल बड़ा विकराल ॥३५॥ गुरुवियोग के दुख से, हुबा पूर्ण व्यवधान । मतः प्रथम छप सका, समय बड़ा बलवान ॥३६॥ बीस वर्ष सब हो गए, किया प्रयत्न महान । तब अम्बाला में किया, पूरए अनुसन्धान ॥३७॥ यही बिनति है भम्त में, करों दोषपरिहार । ईस-सुल्य मानस करो, प्राकृत-भाषा-प्यार ॥३॥ कार्य बड़ा यह कठिन था, समझो म मासान । कृपा हुई गुरुदेव की, सफल हुमा मुनिज्ञान ॥३९॥ * आरमगुरवे नमः * +तुर्दावली-विषये किंचिदैसिहान् सोषोऽयम्५ ऋषिलवजितः स्वच्छता प्राप्य गन्छ, मखाऽवच्या प्रचलतितरामुत्तरे भारतेऽस्मिन् ! तस्याऽचार्यो गुरमरसिंहः स पञ्जाबसिंहः, गच्छाऽऽयक्षस्तवनु छ मुनो रामबक्षा बभूव ॥१॥ १. बाधा, विन। २. . प्रमाला बहर (हरियाणा प्रान्व)। ३. प्रायोजन । ४. गुर्वावली-विषये । गुरूणाम्-प्रशानतिमिर-परिहस्तां महापुरुषाणाम, प्रावली-परम्परा, सद्विषये किञ्चिद् ऐनिगम-पौराणिकवृत्तान्त प्रत्यर्थः । ५. अमं सोधों पच्छ पूर्व काजिम्मलिनतां गतोऽपि लवडीऋषिसकागात स्वतां प्राप्य मा पद्यावधि:-पदावधि पावत, प्रपललित रामतिशयन प्रचलतीत्यर्थः। अस्मिनुत्तरे भारते पश्चाब-दिल्ली-हरियाणादिप्रान्तेषु, तस्यैव समाचार्यः पम्जासिंह:-बसरी इत्याभवात भयोऽमर्शमडेति नाम्ना गुमशासीत् । ततन व सेवाममन्तारं गचाऽधिपतिः समयानामधेयो मुनिः समभवत् । मुनी इस्पक थीयः, इलोपे पूर्वस्य दीयोs: ६॥३॥ ११॥ति सिदान्तकौमुदी-सूवल १६

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