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चतुवा
* संस्थत-हिन्दी-टोकाइसोपेतस * यह है कि हमशब्दानुशासन का परिमाण ११८५ श्लोक जितना समझना चाहिए । एक पुस्तक में प्रस्थान २१५५ भी लिखा है। अर्थात् किसी विद्वान के. मत में प्राकृत व्याकरण का श्लोक-परिमाण २१८५ भी स्वीकार किया गया है। वस्तुस्थिति क्या है ? मह व्याकरण शास्त्र के मनीषी विद्वानों को स्वयं विचार करना चाहिए।
* प्राकृत व्याकरण समाप्त *
*हमारा अपना निवेचन * प्राचार्य श्री हेमचन्द्र को "हेम-शम्मानुशासन" की रचनामयों करनी पड़ी? इस प्रश्न का समाधान उन्होंने प्रत्य-कृत-प्रशास्ति में कर दिया है । इस हैमशब्दानुशासन व्याकरण पर "आत्म-गुण-प्रकाशिका हिन्बी-टोका" लिखने का क्या उद्देश्य रहा है ? यह प्रकट कर देना भी अनावश्यक नहीं है। प्रतः दोहों की भाषा में "हमारा अपना निवेदन" द्वारा हम यह अंकित करने लगे हैं , महावीर भगवान के हए सपूत अनेक । अमरसिंह मुनिराज जो, उन में से थे एक शा
बन वाचाय थे, अपाती गुग्गवान [ मगलमय आवर्श थे, संयम विध्य निधान ॥२॥
१ पंजाब के शासन के शृगार रामुपम इनका तेज था, महिमा अपरम्पार ॥॥ शासन इनका प्राज भी. हरा भरा गुलजार । गौरव है पंजाब का, माने यह संसार |४|| अम्सवासोर पांचवें, इनके कबीमान | मानी ध्यानी संयमी, क्षमा दया को स्वान ॥५॥ विद्या के भण्डार थे, जीवन एक शान । गुणसौरभ से भाआ, सुरभित सकल जहान ॥६॥ सुखनायक शुभ नाम था. मुनिवर मोती राम । तप, संयम, बसाय के, मानों थे आराम ॥७). पूज्यपाद वाचाय थे, मम्या के पतवार । बड़े प्रतापी सतसे तेजस्वी अविकार ॥६॥ गणपतिराए शिष्य , इनके परम उधार । शान्त, बास पो बोवनी, जाते सब बलिहार Met प्रझमझ के थे बनी, पावन शुब विचार । रय स्याग का था चढ़ा, पाया बोवन-सार ॥१०॥ जयरामदास जी हुए,. इनके शिष्य महान । "बामा जो" के नाम से जाने इन्हें नहान ॥११॥ बड़े निगले सन्त थे, जग नहीं अभिमान । सहनशील मन स्वच्छ था, कोमल क्या-निधान ।।१२।। अन्सेवामी थे गुरणी, इनके शालिग्राम । सेवाभावी ज्योतिषी, हर्षित माठों याम ॥१३॥ विनय-धर्म के पारखी, ऊंचा पा माचार | मोक्ष-साधना लक्ष्य था, जीत सभा विहार ||१४|| शिष्य आपके थे बड़े, गुरुवार प्रात्मा गम । बिनकर ये जिनधर्म के, भाग्यवान गुणधाम ॥१५॥ श्रष्टा ये साहित्य के, बया घस अवतार । इनके आत्म ज्ञान पर, जन-गण-मन बलिहार ॥१६॥ अमरपसंघ के नाथ ये, वे भाषाय प्रषान । रत्नाकर थे मान के, क्षमावीर बलवान ॥१७॥ चमत्कारमय जीवनी, जीत लिया था काम । कल्पवृक्षा, युगपुरुष थे, जीवन या अभिराम ॥१८॥ .. पंजाब को स्थानकवासी परम्परा में पाप जो साधु-सायो-वर्ग उपलब्ध हो रहा है, इसके धादिगुरु पुज्य
श्री अमर सिंह जी महाराज, पतएव रे पंजाब के मूलपुरुष कहे गए हैं। २. पूज्य श्री अमर सिंह जी महाराज पोरवे शिष्य पूज्य श्री मोती राम जो यहाराज थे। ३. अपवन । ४. जनधर्म-दिवाकर, साहित्यरत्न, नागम-रत्नाकर, श्री कर्भमान स्थानकवासी जैन श्रमण संध के प्राचार्य सम्राट
मुरुदेव पूज्य श्री मात्माराम जी महाराज। ५. कामदेव ।