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३८२ * प्राकृत-व्याकरणम् *
चतुषंपादा घण्ठः । वा+सि । १००३ सू० प्रकारस्य प्रोकारे, १०१५ सू० सेलोपे वण्ठो इति भवति । वण्ठः प्रविवाहितः पुरुषः भूत्यो वा भवति । शृणोति सोहीन इत्यस्मिन् वर्तमानकालिके प्रयोगे प्रस्तुतसूत्रस्य बलेन वर्तमानकालिक-तिव-प्रत्ययस्य स्थाने ६५१ सूत्रेण भूतकालिकः हीन इत्यादेशो जातः ।
* अथ व्यत्यय से सम्बन्धित विनि व्यत्यय परिवर्तन का नाम है । प्राकृत और शौरसेनी प्रादि समस्त भाषायों के नियम प्रपनश-भाषा में भी परिवर्तित किए जा सकते हैं। प्रस्तुत प्रकरण में इसो परिवर्तन [व्यस्यय का निर्देश किया जा रहा है
१११५ प्राकृत आदि भाषाओं के लक्षणों [नियमों का व्यत्यय हो जाता है। अर्थात् एक भाषा के नियम दूसरी भाषा में भी लागू हो जाते हैं । जैसे-मागधीभाषा में ९६९ सूत्र से स्थाषातु से सम्बश्चित तिष्ठ के स्थान में मिठ यह प्रादेश होता है,परन्तु यही मादेश प्राकत, पैशाची और शौरसेनी भाषा में भी हो जाता है। जैसे - तिष्ठति' इस पद का सिष्ठदि [वह ठहरता है] यह रूप मागणीभाषागत होने पर भी प्राकृत प्रादि सभी भाषाओं में प्रयुक्त किया जा सकता है। अपने श-भाषा में अषो-रेफ संयुक्त वर्ण में दूसरा रेफ] का १०६९ ३ सूत्र द्वारा विकल्प से लोप किया जाता है, परन्तु यही नियम मागषी भाषा में भी ग्रहण हो जाता है । जैसे. .. समानुष-मांस-भागकः । कुम्भ-सहल-वसायाः सञ्चितः शद-माणुश-मंश भालके । कुम्भ-शहसम्बशाहे शंचिदे [सेकड़ों मनुष्यों के मांस को उठाने वाला, हजारों घड़ों की घरवी से पूर्ण] यहां कुम्भ-सहस्त्र-वसामा: कुम्भ-शहर बशाहे हजारों घड़ों में विद्यमान चरबी का] इस पद में पठित शहन इस शब्द में अपभ्रंश भाषा के १०६९ चे सूत्र द्वारा वैकल्पिक रेफ-लोप नहीं हो सका। इसी प्रकार अन्य उदाहरण भी समझ लेने चाहिये।
इस के अतिरिक्त, यह भी समझ लेना चाहिए कि केवल प्राकत, शोरसेती अादि भाषा के नियमों का तथा ति पादि प्रत्ययों के स्थान में होने वाले वाद घादेशों का ही प्रत्यय [परिवर्तन] नहीं होता,प्रत्युत जो प्रत्यय वर्तमान काल में प्रसिद्ध हैं। अर्थात् वर्तमान काल में होते हैं,वे भूतकाल में भी हो जाते हैं । जैसे .. अथ प्रेक्षायके रघुतनयः ग्रह पेच्छइ रहु-तणनो [इस के अनन्तर रधु के तनय-लड़के ने देवा), २-आवभाषे रजनीबारानाभासद रयणीमरे [पाक्षसों को कहा] यहां पर पठित १-प्रेक्षांचक्रे तथा -मायभाये ये भूतकालीन क्रिया-पद प्रसिद्ध है किन्तु व्यत्यय-विधायक प्रस्तुत सूत्र ने भूतकाल में वर्तमान कालिक प्रत्यय करके प्रेक्षांचके का पेच्छा [उस ने देखा तथा आसमाये का आभास उस ने कहा यह रूप बना दिया है। यहाँ प्रत्यय बतमान कालिक है, किन्तु अर्थ भूतकालीन किया जाता है। कहीं पर प्रत्यय भूनकाल का रहता है परन्तु अर्थ वर्तमान काल का किया जाता है । जैसे-शृणोत्येष वण्ठः सोहीन एस बघठो [यह बण्ठ [अविवाहित पुरुष, नौकर] सुनता है] यहां भूतकालिक प्रत्पत्र होने पर भी मर्थ वर्तमामकालिक है।
* अथ संस्कएप-भाषा-जम्मान-विधिः * १११६-शेषं संस्कृतवत् सिद्धम् । ८ । ४ । ४४८ । शेषं यदत्र प्राकृत-भाषासु अष्टमे नोक्त तत्सप्ताऽभ्यायो-निबद्ध-संस्कृत-वदेव सिद्धम् ।..
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