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★ प्राकृत-व्याकरणम्
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कुत्र शशधरः कुत्र मकरवरः कुत्र बहिणः ? कुत्र मेघः ? दूरस्थितानामपि सज्जनानां भवति बसाधारणः स्नेहः ||७||
अर्थात्---कहां तो शराब चन्द्रमा और कहां मकरधर समुद्र ? कहाँ बहिण- मोर और कहां मेघ - बादल ? तथापि इन में अद्भुत प्यार पाया जाता है। वस्तुतः दूर स्थित होने पर भी सज्जनों का स्नेह साधारण [ जो साधारण न हो ] हो होता है। यहां पर साधारण शब्द के स्थान में 'सङ्कल' यह आदेश किया गया है। &-कौतुक [कुतूहल, उत्सव, हर्ष, आमोद-प्रमोद, हंसी मजाक ] इस शब्द के स्थान में किए गए 'कोड' इस आदेश का उदाहरण---
restart तरुबराणां कौतुकेन क्षिपति हस्तम् । मनः पुनः एकस्यां सहलश्यां, यदि पृच्छय परमार्थम् ||८||
चतुर्थपादा
अर्थात् कुञ्जर] [ हाथी ] अन्य वृक्षों पर भी बड़े कौतुक - हर्ष के साथ सूण्ड को फेंकता है, बिसाता है, परन्तु यदि सच पूछो तो उसका मन तो केवल सल्लकि [वृक्ष-विशेष, जो हाथी को अत्य षिक प्रिय होता है ] में ही रहता । यहां पर 'कोक' इस शब्द के स्थान में 'कोड' यह श्रादेश किया गया है । १० -- क्रीडा [ खेल ] के स्थान में विहित 'बेड' इस आदेश का उदाहरणक्रीडा कृता अस्माभिः, निश्चयं कि प्रकययत ?
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अनुरक्ताः भवतः अस्मान् मा त्यज स्वामिन् ॥ ॥
मर्याद्र(- हम ने तो केवल क्रीडा [ उपहास ] की थी, आप इसे निश्चय क्यों मान रहे हैं ? हम तो प्रप के [स्नेहो ] एवं भक्त [भक्ति रखने वाले ] व्यक्ति हैं । इसलिए हे स्वामिन् ! हम स्नेही मोर भक्त जनों को मन छोड़ो। यहां पर 'कोडा' शब्द के स्थान में 'खेड' यह प्रादेश किया गया है । ११ रम्य (सुन्दर) के स्थान में किए गए 'रब' इस आदेश का उदाहरण-सरिभिः न सरोभिः न, सरोवरेः नाऽपि उद्यान धर्मः ।
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देशr: रम्या: भवन्ति मूढ, निवसद्भिः सुजनः ||१०||
अर्थात हे मूर्ख ! नदियों से, सरों [जलप्रपातों-जल के भरणों से, सरोवरों [झीलों] से, उद्यानों से तथा वनों से देश रमणीक नहीं होते किन्तु वहां रहने वाले सुजनों [श्रेष्ठ पुरुषों] से ही वे रमणीक बन सकते हैं। यहां पर 'रम्य' शब्द के स्थान में 'रण' यह आदेश किया गया है । १२अत [ पूर्व ] इस शब्द के स्थान में विहित 'टक्कर' इस ग्रादेश का जवाहररण---
झूठा उपालंभ मत दे] । १४ - " पृथक पृथक
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'हृवय ! त्वया एतत् कथितं मम अपतः शतवारम् ।
स्फुटिष्यामि प्रिये प्रवसति अहं भण्ड! अद्भुतसार ! ||११||
अर्थात् हे हृदय रूप भण्ड ! तू मेरे आगे सौ बार कह चुका है कि प्रिय के प्रवास करते ही मैं फूट जाऊंगा, अन: हे अद्भुतसार [अद्भुक्त-विलक्षण सार [शक्ति या परिणाम ] वाला ] भण्ड ! अक्ष तू फूट जा भाव यह है कि हे हृदयभण्ड ! तू महान कठोर है, जो प्रियतम के प्रदेश चले जाने पर भी फूट नहीं पाया। यहां पर 'अद्भुत' इस शब्द के स्थान में 'टक्कर' यह श्रादेश किया गया है। १३ -- "हे सखि !" इन पदों के स्थान में किए गए 'हेल्लि !' इस प्रदेश का उदाहरण- सखि ] मा उपालम्भस्य अलोकम् हेल्लि ! म ह बालु [हे सखि इन पदों के स्थान में 'हेल्लि !' यह प्रादेश किया गया में किए जाने वाले 'जुजुअ' इस आदेश का उदाहरण
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यहां पर 'हे सखि !' इन पदों के स्थान