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*प्राकृत व्याकरणम् *
चतुर्थपादा अर्थात्-प्राङ्गण [मांगन] में हरि को नचाया गया है, और सब लोगों को विस्मय में डाल दिया गया है,अब राधा के पयोधरों को जो अच्छा लगता है,वह हो । भाव यह है कि पाताल के राजा बलि के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए विष्णु भगवान को बामन अवतार धारण करना पड़ा। एक पाँव से तीन लोक को प्रावृत कर लेने के कारण समस्त संसार प्राश्चर्यचकित रह गया । भगवान को वामन रूप में देखकर राधा के मन में कामवासना अंगडाइए लेने लगीं। यहीं पर इशानीम्' इस अव्यय पद के स्थान में 'एम्बहि' यह मादेश किया गया है। प्रत्युत इस अध्ययपद के स्थान में किए गए 'बलि' इस पादेश का उदाहरण--
सर्पलावण्या गौरी नवा कापि विषयन्थिः।
भटः प्रत्युत सम्रियते यस्य न लगति कण्ठे ।।३।। .... अर्थात--सर्व प्रकार के लावण्य से युक्त गौरी [गौर वर्ण वाली नायिका कोई नवीन ही विषप्रन्थि विष की गोल] है, क्योंकि जिस योद्धा के कण्ठ में यह नहीं लगी, वह योद्धा भी मारा जा रहा है। तब जिस के कण्ठ का यह स्पर्श करती है, उसकी मरणदशा का तो कहना ही क्या है ? यहां पर--'प्रत्युत' के स्थान पस्चलिज यह आदेश किया गया है। इतः के स्थान में किए एसहे का उवाहरण-इतः मेघाः पिबन्ति जलम् - एत्तहे मेह पिशस्ति जलु [इधर मेध पानी पो रहे हैं] यहां पर इतः इस अव्ययपद के स्थान में 'एसहे' यह प्रादेश किया गया है।
१०६२-अपभ्रंश भाषा में १-विषरण, २-उक्त और ३-वर्ल्स इन तीन शब्दों के स्थान में क्रमश:१-धुन, २-युत्स और ३----विसच ये तीन आदेश होते हैं । विषण के स्थान में किए गए तुल इस प्रादेश का उदाहरण इस प्रकार है। जैसे
मया शक्तं श्वं धुरा पर, गलिषभः विगुप्तानि ।
स्वया विना पवल ! नारोहति भरः एवमेव विषण्णः किम् ?॥शा अर्थात्-मैंने तुझे कहा है कि तु धुरा को धारण कर, गलिवृषभों [शक्ति के चोर बैलों] के द्वारा हम विडम्बित हो चुके है । हे धवल [श्वेत] वृषभ! तेरे बिना यह भार नहीं उठाया जा सकेगा, प्रतः अब तू व्यर्थ ही विषण्ण [विषादयुक्त] क्यों हो रहा है ? यहां पर "विषपण' शब्द के स्थान में 'चुल्ल' यह मादेश किया गया है। 'उक्त के स्थान में किए गए 'धुत्त' प्रादेश का उदाहरण-मया :सम्माई चुत [मैंने कहा है यहां 'उक्त' के स्थान में "धुस' यह आदेश किया गया है। 'वर्म' के स्थान में किये गए विच्छ' इस मादेश का उवाहरण ---येन मनो वर्मति न भाति में मणु विच्चि न माइ [क्योंकि मन मार्ग में समाता नहीं है। यहां पर 'घम' के स्थान में विच्च यह आदेश किया गया है।
१०९३-अपभ्रंश-भाषा में शीध्र प्रादि शब्दों के स्थान में वहिल्स प्रादेश आदि होते हैं। १-शीघ्र के स्थान में किए गए 'वहिल्ल' आदेश का उदाहरण- .
एक कदा ह! प्रपि मायासि, अन्यत शीघ्र यासि।
मया मित्र ! प्रमारिणतः, स्वया पाहाः खलः नहि ॥१॥ अर्थात हे मित्र ! पहिले तो तू कभी पाला ही नहीं है, यदि प्राता भी है तो शीघ्र ही चला जाता है, मुझे यह प्रमाणित हो गया है कि तेरे जंसा दुष्ट कोई नहीं है। यहां पर 'शीन' के स्थान में बहिरूल' यह आदेश किया गया है। २-कलह के स्थान में किए गए 'घङ्घल' आदेश का उदाहरण
यथा सुपुरुषाः लया कलहाः, यथा नद्यः तथा बलनानि ।। पथा पर्वता तथा कोटराणि, हुण्य । शिबसे किम् ॥२॥