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चतुर्थपादः
संस्कृत-हिन्दी- टीकाद्वयोपेतम् ★
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अर्थात्- जैसे सत्पुरुष वैसे कलह । श्रर्थात् सत्पुरुषों के साथ क्लेश लगे हुए हैं। जैसे- नदियां, वैसे वलन मोड़ तोड़ | अर्थात् नदियों में बहुत मोड़-तोड़ होते हैं। जैसे पर्वत बसे कोटर । अर्थात् पर्वतों में कोटर हे बहुत होते हैं। अतः हे हृदय ! तु खिन्न क्यों हो रहा है ? यहां पर "कलह" के स्थान '' यह आदेश किया गया है। ३-अस्पृश्य-संसर्ग इस शब्द के स्थान में किए गए 'विहान' इस प्रादेश का उदाहरण इस प्रकार है
ये मुक्त्या रत्ननिधि आत्मानं तदे क्षिपन्ति ।
deferrinर्गाः परं कुरकुर्वाणाः भ्रमति || ३ ||
अर्थात् जो शङ्खलाकर समुद्र को छोड़कर अपने आप को तट पर फेंक देते हैं, उन शङ्खों को अस्पृश्य-संसर्ग [ जिन का संसर्ग सहबास अस्पृश्य है, करने योग्य नहीं है, ऐसे प्रथमजन ] बजाते हुए भ्रमण करते रहते हैं । अर्थात् समुद्र को छोड़कर शङ्ख नीचजनों के संसर्ग से नीच हो जाते हैं। यहां पर-- 'अस्पृश्य-संसर्ग' इस शब्द के स्थान में 'विद्याल' यह आदेश किया गया है । ४--भय इस शब्द स्थान में किए गए क इस आदेश का उदाहरण
वि: (fert: ) अजितं खाद मूढ !, संचिनु मा एकमपि म्मम् । किमपि भयं तत् पतति येन समाप्यते जन्म ॥४॥
अर्थाद- हे मूढ ! बहुत दिनों से जो घन उपार्जित किया गया है, उसका उपभोग कर, उसमें से एक भी द्रम्म [ प्राचीन सिक्का या नाप तौलविशेष ] का संग्रह मत कर, क्योंकि कोई उस तरह का भय (बीमारी, रोग या डर ) ग्रा जायेगा कि जिस से यह जीवन ही समाप्त हो जायेगा | यहां पर भय के स्थान में प्रक्क यह प्रादेश किया गया है। ५-मात्मीय शब्द के स्थान में विहित अप्पन इस प्रदेश का उदाहरण-स्फोटयतः यो हृदयमात्मीयम् फोडेन्सि जे हिथडजं श्रप्पणडं (जो दोनों अपने हृदय को फोड़ डालते हैं) यहां पर आत्मीय इस शब्द के स्थान में अप्पण यह आदेश किया गया है । ६दृष्टि इस शब्द के स्थान में किए गए में हि इस आदेश का उदाहरण
एकमेकं reaf sea हथि सुष्ठु सर्वावरेण । ततोऽपि दृष्टि: यस्मिन् कस्मिन् अपि राधा ॥
कः शक्नोति संवारीषु दृढनयने मेहेन पर्यस्ते ||५||
अर्थात- हरि [कृष्ण ] यद्यपि प्रत्येक को बड़े आदर के साथ देखते हैं, तथापि जन की दृष्टि वहीं पर पड़ती है, जहां कि राधा होती है। स्नेह से परिपूर्ण नेत्रों को भला कौन नियंत्रित कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं। यहां पर 'दृष्टि' इस शब्द के स्थान में 'वेहि' यह श्रादेश किया गया है । ७गढ [अतिशय, वृद्ध] के स्थान में त्रिति 'निच्चट्ट' इस प्रादेश का उदाहरण
fara कस्य स्थिरत्वम् ?, यौवने कस्य गर्थः ?
सः लेखः प्रस्थाप्यते यः लगति गाढम् ||६||
अर्थात् विभव धन किस का स्थिर है ? अर्थात् किसी का नहीं, और यौवन पर कौन गर्व [मान] कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं । यह वस्तुस्थिति है, तथापि उस व्यक्ति ने योवन और वैभव का अभिमान सूचक जो लेख भेजा है वह गाढ [ श्रतिशयोक्ति पूर्ण ] प्रतीत होता है। यहां पर - 'गाव' इस शब्द के स्थान में 'निच्चट्ट' यह प्रादेश किया गया है। 'साधारण' इस शब्द के स्थान में किए गए 'सल' इस प्रदेश का उदाहरण-