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चतुर्थ पादः * संस्कृत-हिन्दी-टीकाद्वयोपेतम् *
३२३ __ यहां --१-फोदा केहउ (कंसा), २--याग जेहु (जसा), ३---साहातेहु (पैसा), ४ईडगाह (ऐसा) इन पदों में शावि अवयब के स्थान में ह [हित् एह] यह प्रादेश किया गया है।
१०७४.....अपभ्रश भाषा में अवन्त [जिस के अन्त में प्रकार हो] याहा आदि अर्थात् याइश सावश, कोहश तथा ईट्टया इन शब्दों के दादि [जिस में दकार प्रादि में हो] अवयव के स्थान दिद [जिसमें तार इत् ] आस पहं ना होता है। जैसे ----यावृशः जसो [जैसा], २ताधा:-तइसो [वैसा], ३---कोशः कइसो [कैसा], ४.-ईशा-अइसो [ऐसा] यहां पर यादृश आदि शब्दों के दादि अवयव को डित् अहस यह ग्रादेस किया गया है।
१०७५-- अपभ्रश-भाषा में यत्र और तत्र इन शब्दों के 'ब' प्रत्यय के स्थान में एत्य और प्रत्त ये दो डित् प्रादेश होते हैं। जैसे---
यदि स घटयति प्रजापतिः, कुत्रापि सात्वा शिक्षाम् ।
यत्रापि तत्रापि अत्र जगति भण तबालस्याः सादृश्यम् ||१|| अर्थात-यदि वह प्रजापति-प्रझा यहां पर, वहां पर प्रथवा कहीं पर भी शिक्षा प्राप्त करके रचना करे तो क्या इस संसार में उस स्त्री के समान [किसी पुरुष की रचना कर सकता है ? कभी नहीं । भाव यह है कि इस नारी का सौन्दर्य प्रद्वितीय है।
यहां पर ---यत्र-जेत्थु (जहाँ पर), २-तन्त्रतेत्यु (वहां पर) इन दोनों पदों में ', के स्थान में रितु एत्यु यह प्रादेश किया गया है। इस के अतिरिक्त-१-पत्र स्थितः अस्तु ठिदो (जहां पर ठहरा हुमा है), २-सत्र स्थितः तत्तु ठिदो (वहाँ पर ठहरा हुमा है) यहां पर प्रत्यय के स्थान में डित् अत्त यह आदेश किया गया है।
१०७६-अपभ्रशभाषा में कुत्र और अत्र इन शब्दों के '' के स्थान में हित एस्प यह प्रादेश होता है। जैसे-कुत्राऽपि लावा शिक्षा, पत्रापि तत्रापि अत्र अगतिः केत्यु कि लेप्पिा सिक्खु, बेत्यु वि, तेत्यु वि, एत्थु जगि [यहाँ पर, वहां पर प्रथवा कहीं पर भी शिक्षा प्राप्त करके इस जगत में] यहाँ पर-१-कुन- केत्थ कहां पर], २-प्रत्र एत्यु [यहाँ पर] इन पदों में '' प्रत्यय के स्थान में बित् 'एस्थु' यह मादेश किया गया है।
१०७७-अपभ्रंश भाषा में यावत और सावत् इन दोनों अव्ययपदों के वावि [जिस के आदि में वकार हो] अवयव को म, और महि ये तीन प्रादेश होते हैं। जैसे
यावत् न निपतति कभ-सटे सिह-चपेटा-पटात्कारः ।
सावत् समस्ताना मवकलानां पदे पदे बाधते दरका ॥१॥ अर्थात्---जब तक समस्त मदोन्मत्त हाथियों के कुम्भ-तट पर चटात्कार शब्द करता पर सिंह को चपेटा नहीं पड़ता तभी तक उन पर पग-पग पर ढक्का (बड़ा ढोल) सुनाई देती है।
यहां पर-१-- यावत् जाम (जबतक}, २--तावत्-ताम (तब तक) इन पदों में बावि अवयव को 'म' का प्रादेश किया गया है। 'उ' आदेश का उदाहरण
तिलाना तिलवं तावत, परं यावत् म स्नेहाः गलन्ति ।
स्नेह प्रणष्टे ते एव तिलाः, तिलाः भ्रष्टा खताः भवन्ति ॥२॥ ___ अर्थात् ---तिलों का तिलत्व [तिलपना] तभी तक है, जब तक उन में से स्नेह [चिकनाहट, मापी के माथे के दो मांसपिष्ट | तट शरीर के कतिपय अवयवों की संका है। जैसे-कटितट, कुश्चतट पादि।