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चतुर्थपादः श्रादेश होते हैं। जैसे
★ संस्कृत-हिन्दी-टीकालम् ★
मम कान्तस्य गोष्ठस्थितस्य कुतः कुटीरकाणि बलन्ति । अथ रिपुरुधिरेण विध्यापयति अथ भ्रात्मना, न चान्तिः ॥१॥
वर्षा-गोष्ट [ गोशाला, महीरों का मड्डा, जमाव ] में स्थित होने पर भी मेरे प्रिय के कुटीरक [ छोटी कुटियाएं ] क्यों जल रहे हैं? यदि ये किसी शत्रु ने जलाए हैं तो वह स्वयं रिपु के रुधिर से उन्हें बुझाएगा। प्रथवा श्रपने आप ही ये जल रहे हैं तो भी यह बिना किसी से सहायता लिए पाप ही इन को बुझा डालेगा, इस में कोई भ्रान्ति [ सन्देह ] नहीं करनी चाहिए ।
यहां पर 'कुत:' इस अव्ययपद के स्थान में 'क' यह आदेश किया गया है। कहन्ति का उदाहरण - धूमः कुतः उत्थितः धूमु कहन्तिहु उट्टि [धू कहां से उठा हुआ है ] यहां पर 'कुतः' इस अव्ययपद के स्थान में 'कहन्तिह' यह प्रादेश किया गया है।
१०८८-- अपभ्रंश भाषा में ततः और सवा इन शब्दों के स्थान में 'तो' यह आदेश किया जाता है। जैसे
यदि भग्नाः परकीयाः ततः सखि ! मम प्रियेश ।
अथ भग्ना अस्माकं सम्बन्धिनः तदा तेन मारितेन ॥ १ ॥
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इस श्लोक का अर्थ १०५० में सूत्र के दूसरे लोक में दिया जा चुका है। यहां पर 'तत' इस earera के स्थान में 'तो' यह प्रादेश किया गया है।
१०८९ प
५ - मं
भाषा में सूत्रोक्त १---एवम्, २ परम् ३ - समम्, ४- ध्रुवम्, १ - मा, और ६-मनाक् इन पदों के स्थान में क्रमशः १ - एम्व, २– पर, ३ – समाणु, ४ - और ६ - मजा ये श्रादेश होते हैं । एवम् के स्थान में होने वाले एम्य का उदाहरण---- प्रियसंगमे कुतः निद्रा, प्रियस्य परोक्षस्य कथम् ।
भया द्वे अपि विनाशिते नैवं न तथा ॥ १॥
अर्थात् प्रीतम का संगम होने पर निद्रा कहां ? और उस के परोक्ष [ वियोग ] में भी निद्रा कहो ? दोनों प्रकार से मेरी निद्रा का नाश हो चुका है। भाव यह है कि न निद्रा इस तरह [ पति की उपस्थिति में] प्राती है, और नाही उस तरह [पति के विरह-काल में] निद्रा की स्थिति बनती है। यहां पर एवम्' [ इस प्रकार ] इस मव्ययपद के स्थान पर एम्ब यह मादेश किया गया है। परम् के स्थान में किए पर प्रादेश का जवाहरण- गुरोः न सम्पत् कीर्तिः परम् गुणहि न संपइ कित्ति पर [गुणों से सम्पत्ति नहीं, किन्तु कीर्ति मिलती है ] यहां पर 'परम' के स्थान में 'पर'' यह आदेश किया गया है। समम् के स्थान में किए गए सभा का उदाहरण
कान्तो यत् सिंहस्य उपमीयते तन्मम खण्डितः मानः । सिंहा मोरक्षकान् गजान् हन्ति प्रियः एव-रः समम् ||२||
धर्षात् — मेरे शीतम को जो सिंह से उपमा दी गई है, इस से मेरा मान खण्डित हुआ है क्योंकि सिंह तो नीरक्षक [ जिस का कोई रक्षक न हो ] हाथियों को ही मारता है, किन्तु मेरा प्रीतम पदासियों [ पैदल सेना ] से रक्षित हाथियों को मारता है। यहां पर - समम् [ साथ ] इस पद को समा यह प्रादेश किया गया है। भुवम् के स्थान में किये गए अबु धादेश का उदाहरण
चलं जीवितं प्रवं मरणं, प्रिय ! वध्यसे किम् । भविष्यन्ति दिवसाः रोषरणस्य दिव्यानि वर्षशतानि ||३||