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* प्राकृत-व्याकरणम् ★
चतुर्थवादः प्रकार यथास्थान गृहीत किए जा सकते हैं। जहां पर जैसा प्रयोग मिले वैसा ही आदेश कर लेना चाहिए । टा-प्रत्यय का उवाहरण
मया शातं प्रिये ! विरहिसानां काऽपि धरा भवति विकाले ?।
केवल मृगासोऽपि तथा तपति यया दिनकरः क्षयकाले ॥१॥ भाद... प्रिये । मैं यह जानना है कि विहित-वियोगी व्यक्तियों को विकाल [सन्ध्याकाल में बहुत बुरी दशा होती है, उन्हें कहीं पर भी शान्ति नहीं प्राप्त होतो । अधिक क्या, उस समय चन्द्रमा भी ऐसे तपता है, जैसे प्रलयकाल में सूर्य ।।
यहां पर--मया मई (मैंने) इस पद में प्रस्तुत सूत्र से टा-प्रत्यय के साथ प्रस्मद शब्द के स्थान मैं 'म' यह प्रादेश किया गया है। डि-प्रत्यय का जवाहरण-स्वयि मयि द्वयोरपि रण-पातयो:-पई मई बेहि वि रणगयहि [तेरे मेरे दोनों के ही रण में जाने परे] यहां-मयि मई इस पद में हि-प्रत्यय के साप अस्मद शब्द के स्थान में 'मई" यह आदेश किया गया है । यह श्लोक का एक अवयव है । सम्पूर्ण श्लोक १०४१ ३ सूत्र में दिया गया है। प्रम-प्रस्थय का उदाहरण-माम मुञ्चतः तव मई मेल्लन्तही तुज्मु [मुझ को छोडते हुए तेरा] यहां पर अम प्रत्ययान्त माम् इस शब्द के स्थान में 'मई" यह प्रादेश किया गया है। यह भी श्लोक का एक अवयन है । सम्पूर्ण श्लोक १०४१. सूत्र में देखो। .... १०४६-अपभ्रश भाषा में भिस्-प्रत्यय के साथ प्रस्मन शब्द के स्थान में "अम्हेहि" यह आदेश होता है। जैसे --युष्माभिः अस्माभिः यत् कृतम् = तुम्हे हि किमाउँ [तुमने और हमने जो किया यहां पर अस्माभिः इस भिस्-प्रत्ययान्त अस्मद् शब्द के स्थान में प्रम्हहि यह प्रादेश किया गया है। यह श्लोक का एक चरण है, सम्पूर्ण श्लोक १०४२ वे सूत्र में दिया जा चुका है ।
१०५० अपभ्रंश भाषा में सति और इस इन प्रत्ययों के साथ अहमद शब्द के स्थान में 'महु' और 'माझ' ये दो प्रादेश होते हैं। जैसे--मय भवन गसः मह होन्तउ गदो, मझ होन्तउ गदो [मेरे से होता हुमा गया यहां सि-प्रत्ययान्त प्रस्मन् शब्द के स्थान में मह और मझु ये दो प्रादेश किए गए हैं। इस प्रत्यय का उदाहरण
मम कान्तस्य तो वौषी, सखि ! मा उपालम्भस्व अलीकम् ।
बवतोऽहं परमवता यध्यमानस्य फरवालः ॥१॥ ___ अर्थात्-हे सखि ! मेरे कान्त (प्रीतम) में दो दोष-अवगुण हैं, यह तु व्यर्थ उपालम्भ दे रही है, क्योंकि वे तो गुण ही हैं। देख,दान करते हुए उसने मेरा उद्धार कर दिया है, मेरा नाम अमर बना दिया है। दूसरे युद्ध करते हुए उसने तलवार का उद्धार कर दिया है,प्रर्थात् -- युद्ध में तलवार के कमकार देखकर लोग तलवार के गीत गाते नहीं बकते हैं।
यहां पर स्-प्रत्ययान्त स्मद्-शब्द (मम) के स्थान में 'मह' यह प्रादेश किया गया है। इस प्ररथम का दूसरा उदाहरण इस प्रकार है
पदि भग्नाः परकीयाः ततः सखि मम प्रियेरण।
अप भग्ना अस्माकं सम्बषिना, तवा तेन मारितेन ॥२॥ ......अर्थात-यदि शत्रुपक्ष के सैनिक मारे गए हैं तो हे सखि ! वे मेरे प्रिय के द्वारा ही मारे गए है, और यदि हमारे सैनिक मारे गए हैं तो उस के मारे जाने के बाद ही । भाव यह है कि मेरे प्रीतम . की अवस्थिति में हमारा कोई नुकसान नहीं कर सकता था।
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