________________
★ प्राकृत व्याकरणम् ★
चतुर्थपादः
भाइ, तलमण्टइ, भण्टइ, झम्पइ, भुमइ, गुमइ, कुमइ, फुसइ, तुमइ, दुसइ, परी, परइ प्रदेशों के प्रभाव पक्ष में भइ ( वह भ्रमण करता है) ऐसा रूप बनता है । ८३३ - गमि वातु के स्थान में १ - अई, २ श्रइच्छ, ३ प्रवज्ज, ४ अवज्जस, ५ उक्कुस ६- प्रक्कुस, ७ – पचचड्ड, पन्च, ६-मह, १० - जी, ११ - गीण, १२ - पीलुषक, १३पदअ १४- रम्भ, १५ - परिभ्रल्ल, १६-बोल, १७ परिअल, १८ णिरिणास १६-- निवह, २०अवसे और २१ अवहर ये २१ प्रदेश विकल्प से होते हैं। जैसे गछतिग्रई, प्रच्छद, प्र वजई, प्रज्जउक्कुस, अक्कुस, पचचहुइ चन्द, निम्मद, गीइ, गोणद्द, गोलुक्कड, पदमइ, रम्भ, परिल्ल, बोलाइ, परिचलइ, मिरिगासइ, णिवहर, ग्रवसेहद, अवहरद, प्रादेशों के प्रभावपक्ष में (वह जाता है) यह रूप होता है । वृत्तिकार फरमाते हैं कि- १- हम्मद, २-- मिहम्मद, ३ - जोहम्मद, ४ -- आहम्मद और ५ - पहम्मद ये रूप तो हम्म ( जाना) इस धातु से ही बन जाते हैं । जैसे - १ - हम्मति हम्मद ( वह जाता है), २- निहम्मति हिम्मइ (वह निकलता है), ३-निर्हम्मी (व्ह शहर जाता है, हरिग्रहम्मद (वह श्राता है), ५ - प्रहम्म सि पहम्मद (वह तेजी से जाता है। ये सब प्रयोग स्वतन्त्र तथा नि श्रादि उपसर्गों के साथ जुड़ने पर हम्म धातु के ही होते हैं । श्रतः प्रस्तुत सूत्र का यहां पर कोई कार्य नहीं समझना चाहिये ।
८३४- प्राङ (भा) उपसर्ग पूर्वक गमि धातु के स्थान में 'अहिपच्चुध' यह प्रदेश विकल्प से होता है। जैसे- आगच्छति महिपच्चुयइ प्रदेश के प्रभाव पक्ष में- आगच्छह ( वह आता है) यह रूप बनता है ।
ᄋ
스스
८३५--सम् उपसर्ग पूर्वक गमि धातु के स्थान में अभिड यह प्रदेश विकल्प से होता है । जैसे --- संगति - प्रव्भिड श्रादेश के प्रभाव पक्ष में संग (वह संगति करता है, वह सम्यक् प्रकार से जाता है) यह रूप होता है।
३६ - प्रभि तथा आङ (भा) उपसर्ग पूर्वक गमि धातु के स्थान में 'उम्मत्व' यह प्रादेश विकल्प से होता है । जैसे - अभ्यागच्छति उम्मत्थ, आदेश के अभाव में अम्भागन्छ ( वह अभिमुख- सामने बाता हूँ) यह रूप होता है ।
६३७ प्रति और भाङ, (श्रा) उपसर्ग पूर्वक गमि धातु के स्थान में पलोट्ट यह प्रादेश त्रिकल्प से होता है। जैसे- प्रत्यागच्छति पलाइ प्रदेश के प्रभाव पक्ष में पचागच्छइ (वह वापिस भ्राता है। ऐसा रूप होता है।
शमि धातु के स्थान में परिसा श्रीर पडिसाम ये दो आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे --- शाम्यति = पडसाद पडसाद प्रदेशों के प्रभाव में समइ ( वह शान्त होता है) यह रूप बनता है । ८३६-- रमि धातु स्थान में – १ –संखुड्डु, २--- -- खेडु, ३-उग्भाव, ४ -- किलिविश्व, ५कोट्टुम, ६- मोट्टाय, ७--गोसर और ८--- - वेल्ल ये बात यादेश विकल्प से होते हैं। जैसे रमते संखुइ, खेड्डुइ, उन्भावद, किलिकिञ्चइ, कोट्टुमइ, मोट्टायइ, णीसरइ, वेल्लइ प्रदेशों के प्रभाव-पक्ष में रम (वह खेलता है) यह रूप बन जाता है।
८४०- -पूरि (पूर्) धातु के स्थान में – १ प्रधाड, २ -- अग्घष, ३ - उडुमा (उद्धम ), ४ --अङ्गुम श्रीर५- प्रहिरेम ये पांच प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे— पूरयति ग्वाड, अबइ, उद्घुमाइ (उद्धूम), अनुमइ, पहिरेम आदेशों के प्रभाव-पक्ष में पूर (वह पूरा करता है) यह रूप बनता है।