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मृत्यूपाट
★ संस्कृत-हिन्दी टीकाद्वयोपेतम् ★
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कालिक प्रत्यय परे होने पर घोषयते दुनिभहिद्द, दुहिहिइ (वह दूहा जायगा ) इत्यादि प्रयोगों में वर्त Shreefos और भविष्यत्कालीन प्रत्ययं परे रहने पर 'भूभ' यह आदेश त्रिकल्प से किया गया है ।
९१७ - क्रमभाव से दह धातु के अन्तिम वर्ण को द्विरुक्त (द्वित्व) कारादेश विकल्प से होता है सौर उसके संनियोग में क्स का लोप होता है । जैसे बाते बज्छ, डहिज्जद (वह जलाया जाता है), भविष्यकालीन प्रत्यय परे होने पर पक्ष्यते इज्भिहि, उहिहिद (वह जलाया जायगा ) ऐसा रूप बढ़ता है। यहां पर मातु के हकार को '' यह आदेश करके क्य का लोप किया गया है । ६१८ - कर्मभाव (कर्मवाच्य तथा भाववाच्य ) में बन्धू धातु के '' इस श्रवयव के स्थान में विकल्प से 'शुभ' यह भादेश होता है और उसका संनियोग होने पर वय-प्रत्यय का लोप किया जाता है। जैसे बध्यते बरु, बज्जिद्द (वह बांधा जाता है), भविष्यकालीन प्रत्यय के परे होने पर - मिस्ते= बज्भिहिर बविहिद (वह बांधा जायगा ऐसा रूप बनता है। यहां पर वर्तमानकालिक तथा अविस्वकालिक प्रत्यय परे होने बन्धुधातु के 'न्ध' को 'झूम' यह आदेश किया गया है।
९१६ -- कर्मभाव में सम्, अनु और उप इन उपसर्गों से मागे यदि रुधिर्घातु हो तो इसके अ लिग वर्ण को 'हा' यह प्रादेश विकल्प से होता है, और इस आदेश की अवस्थिति में क्य-प्रत्यय का खोप हो जाता है। जैसे - १ - संयते संरुभङ्ग (वह रोका जाता है), २-- अनुरुध्यते - अणुरुज्झद (अनुरोध किया जाता है), ३-उपरुध्यते उबरुज्झर (वह रोका जाता है), जहां पर प्रस्तुत सूत्र का कार्य नहीं हुआ, वहां पर क्रमशः संन्धिज, मरुन्जिनिये रूप बनते हैं। भविष्यकालीन प्रत्यय परे रहने पर- १ - संशेत्स्यते संरुज्झिहिइ आदेश के प्रभावपक्ष में संन्निहि ( रोका जायगा ) इत्यादि रूप बन जाते हैं। यहां पर वर्तमान तथा भविष्यत् काल बोधक प्रत्यय के पर होने पर रुके प्रन्त्य वर्ण को 'भूत' यह प्रवेश करके कय का लोप किया गया है।
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२०- कर्मभाव में गम् आदि धातुओं के अन्तिम वर्ण को विकल्प से द्वित्त्व होता है और उस का संवियोचे होने पर कय का लोप होता है। जैसे-म् धातु का उदाहरण- १ गम्यते गम्मद, ग मिज्ज (उससे जाया जाता है), इस का उदाहरण - २ - हस्यते हस्सद हसिज्जइ ( उस से हंसा जाता है), भर बातु का उदाहरण ३ - भष्यते भाइ, भणिज्जइ (उससे कहा जाता है), छुप धातु का याहरण - ४ - छुपाते छुप्पइ, विजद ( उससे स्पर्श किया जाता है), वृत्तिकार फरमाते हैं कि गमा दिगण में रुद् धातु का भी पाठ है, परन्तु ८९७ सूत्र से दकार के स्थान में वकारादेश कर लेने के अन तर जब उसका यह रूप बत्तता है तब उस का यहां पर ग्रहण किया जाता है। जैसे - ५ - रुथते
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विज (उस से रोया जाता है, लम् का उदाहरण -६-- लभ्यते लग्भइ, लहिज्ज (उससे प्राप्त किया जाता है) कथ् का उदाहरण- ७ कम्यते कत्थद, कहिज्जद ( उससे कहा जाता है), भुन का जवाहरण - ६ - भुपते- भुज्जर, जिज्जद ( उस से खाया जाता है), भविष्यत्कालीन प्रत्यय के परे रहने पर गम्मिहि गमिहिद ( उस से जाया जायगा ) इत्यादि रूप बन जाते हैं। यहां पर गम मादि धातुओं के मन्तिम वर्ण को विकल्प से द्विव करके क्य का लोप किया गया है। तु और इन धातुओं के अन्त्य वर्ण को विकल्प से 'ईर' यह श्रादेश होता है,. और इस का संनियोग होने पर कप प्रत्यय का लोप हो जाता है। जैसे -१ ह्रीयते ही रद्द, हरि(उस से जाता है), २--कियते कीरड़, करिज (उससे किया जाता है), ३ तीर्थ
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है-जीर
(उस से जीर्ण हुमा जाता है),
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