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* प्राकृत-ध्याकरणम् *
चतुर्थपादः ६६१-मागधीभाषा में द्विरुक्त (जिसे दो बार कहा गया हो) टकार को तथा षकाराकान्त (षकार से युक्त) ठकार को सकाराकान्त (सकार से युक्त) टकार होता है। अर्थात और 8 को 'स्ट' यह प्रादेश हो जाता है। ''के जवाहरण-१-पट्टा-पस्टे (तस्ती, लिखने की पटिया, तांबे आदि । धातुओं की चिपटी पट्टी,जिस के ऊपर राजाज्ञा या दान प्रादि देने की सनद (प्रमाणपत्र) खोदी जाती थी, आदि), २-भट्टारिका-भस्टालिका (पूज्य नारी), ३-भट्टिनी- भस्टिणी (महारानी, ब्राह्मण की स्त्री), ठ के उदाहरण-१-सुष्टु कृतम् मा शुस्टु कई (अच्छा किया), २-कोष्ठागार-कोस्टागालं (चान्य प्रापि खसे मार, यहां पर ट्ट और ष्ठ के स्थान में क्रमश: "स्ट' यह आदेश किया
९६२-मामधीभाषा में स्थ और पं इन संयुक्त वर्गों के स्थान में सकारान्त (सकार से युक्त) सकार होता है । सेक्स के बाहरण-१-उपस्थितः उवस्तिदे (हाजिर),२--सुस्थितः- शुस्तिदे (अच्छी तरह से रहा हुमा), र्थ के उदाहरण-१-अर्षपलि:=प्रस्त-वदी (धन का स्वामी), २-सार्थ - बाहाम शस्तवाहे (सार्य व्यापारिसों) का समूह) का मुखिया, संधनायक) यहां पर स्थ और र्थ इन के स्थान में 'स्स' यह प्रादेश किया गया है।
___ ३-मागधी भाषा में ज़, ध और य इन के स्थान में पका रादेश होता है । अकार के उवाहरण-१-जानातियाणवि (वह जानता है), २-बानपा-यणवदे (देश), ३-अर्जुन:-अय्युणे (पापा-पुत्र अर्जुन), ४--सुजतः दुय्यरणे (दुष्ट प्रादमी), ५-पति-गयदि (वह मरजता है), ६-- गुण-पजित: गुण-वय्यिदे (गुणों से रहित), बके उदाहरण-१-मखमयमय्यं (मदिरा), २-अथ सि विद्याधरः आगत:- अयय किल विय्याहले मागदे (निश्चय ही प्राज विद्याधर पा गया है), पकार
बाहरण---यातिम यादि (वह जाता है), २-पपास्वरूपम् - यधाशस्लूवं (स्वरूप के अनुसार), ३-यानपात्रम्याण-बत्त (नाव, जहाज), ४-यहि (मलिः)- यदि (अगर अथवा साधु), यहां पर बकारमादि के स्थान में सकारादेश किया गया है। पुतिकार फरमाते हैं कि यकार का यह विधान २४५ सत्र से यकार के स्थान में होने वाले जकारादेश को बाधित करने के लिए किया गया है।
९६४-मागधीभाषा में ज्य, पश और मज इन संयुक्त वर्णों के स्थान में द्विरुक्त (जिसे दो बार कहा गया हो) प्रकार होता है। जैसे-ज्य के उदाहरण-१-अभिमन्युकुमारः प्रहिमत्रु-कुमाले (अर्जुन का योद्धा पुत्र),२-अन्य-विशाम्प्र अदिशं (दूसरी दिशा को), ३. सामान्यगुणः-शामन्त्रगुणे (साधारण गुण), ४ - कन्यकावरणम् - कम्ञका-बलणं (कन्या का वरण-चुनाव याचना, या पर्दा), ज्य के उदाहरण-१-पुण्यवान-पुत्रवन्ते (पुण्य वाला), २-अब्रह्मण्यम् अवम्हनं (ब्राह्मण के अयोग्य), ३-पुण्याहः-पुत्राहं (पुण्य रूप दिन),४-पुष्यम्-पुत्रं (पवित्र कार्य), शके उदाहरण१-प्रनाविशाल: पनाविशाले [जिसकी प्रज्ञा-बुद्धि विशाल (बड़ी) हो], २...-सर्वशः शत्रने (सब कुछ जानने वाला),३-- अशा अवता(अनादर), अज के उदाहरण-१-अञ्जलिः अननी (कर-सम्पुट, अभिवादन का संकेत), २-बनायः धणजए (अर्जुन), ३- पञ्जर:- पञले (पसलो, शरीर, गौ का एक संस्कार-विशेष), यहां पर न्य आदि संयुक्त वणों के स्थान में ' ' यह श्रादेश किया गया है।
६५-मागधीभाषा में धातु के जकार को 'ञ' यह आदेश होता है । ९६३ ३ सूत्र से जकार को यकारादेश होता है, किन्तु यह उसका अपवादसूत्र है । जैसे-वजति वञ्चदि (बह जाता है) यहां पर जकार को 'ज' यह मादेश किया गया है।