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प्राकृत व्याकरणम् ★
चतुर्थपादा
मर्थाद-संसार अग्नि से उष्णता (गरमी) और (शीत) वायु से शीतलता प्राप्त करता है, परन्तु जो पुरुष प्रग्नि से भी शीतलता का अनुभव करता है, उस के लिए उष्णता कहां ? भाव यह है कि शा न्ति से परिपूर्ण वातावरण में सब शान्त रहते हैं, किन्तु प्रशान्त वातावरण में भी शान्त रहना, यह बहुत बड़ी बात है । दुःख में भी समता को संभालने वाला व्यक्ति महापुरुष होता है ।
यहां पर - अग्निना गएँ (अग्नि से ) इस शब्द में या प्रत्यय के स्थान में ऍ यह आदेश किया गया है । ण और अनुस्वार के उदाहरण --
विप्रियकारकः यद्यपि प्रियस्ततोऽपि तमानय मद्य । affect of गृहं ततस्तेन अग्निना कार्यम् ||२||
अर्थात- हे सखि ! यद्यपि प्रिय ( प्रीतम ) प्रतिकूलता करने वाले हैं, तथापि आज तुम उन को (wafa उनके बिना मेरा निर्वाह नहीं हो सकता), यद्यपि अग्नि से घर जल जाता है तो भी उस से ही काम चलता है ।
यहां पर- १ - प्रतिमा श्रमिण (अणि से), २-मग्निमा-अग्गिं ( अग्नि से ) इस इकारान्त शब्द में प्रत्यय के स्थान में क्रमश: 'ण' तथा अनुस्वार [0] ये दो प्रादेश किए गए हैं। वृत्तिकार फरमाते हैं कि इकारान्त शब्द की भाँति उकारान्त शब्द से थाए टा-प्रत्यय के स्थान में किए एज तथा अनुस्वारः इन आदेशों के उदाहरण भी समझ लेने चाहिएं, अर्थात् इन के उदाहरणों की कल्पना भी स्वयं कर लेनी चाहिए ।
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१०१५ -- अपभ्रंश भाषा में सि, अम्, अस् और शस् इन चार प्रत्ययों का लोप होता है । जैसे- एते तेऽश्वाः, एषा स्थली ए ति घोडा, एह बलि (ये वे घोड़े हैं, यह रणस्थल है) । इत्यादि पदों मैं सिं, धम्मौर जस् इन प्रत्ययों का लोप किया गया है । यह पूर्ण श्लोक है, पूर्ण श्लोक १००१ सूत्र में दिया गया है। वह इस प्रकार है
एक ति घोडा एह पनि एइ ति निसिधा खग्य । एत्युमुखीसिम जाणीवह जो न वि वालइ वा ॥१॥
यहां पर- १ - एते एड (ये), २ सेति (वे), ३ घोटका घोडा (घोड़े ), ४ – निशिताः = निसिया ( तीक्ष्ण), ४ खड्गाः खग्ग (तलवारें ) इन शब्दों में प्रस्तुत सूत्र से जस्-प्रत्यय का, १ - एषा एह (एह), २-स्थली थलि (युद्धस्थल), ३--मनुष्यत्यम् = मुनीसिम (पुरुषत्व), ४- यः जो (जो) यहाँ पर सिप्रस्थय का तथा वल्गाम् बम (लगाम को ) यहां पर अम् प्रत्यन का लोप किया गया है। यथा यथा वरिमाणं लोचनयोः नितरां श्यामला शिक्षते ।
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तथा तथा मन्मथः निजकशरान् वर प्रस्तरे तीक्ष्णयति ॥ १॥
मर्याद-- जैसे-जैस] श्यामला (श्याम वर्ण की कन्या) नेत्रों की वक्रता (कटाक्षपूर्वक व देखना) सोखती चली जा रही है, अर्थात् इस के नयनों में वक्रता याती जाती है, वैसे-वैसे मन्मथ (कामदेव ) अपने बाणों को कठोर पत्थर पर तीक्ष्ण करता जा रहा है ।
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यहाँ पर १-बक्रिमाणम् - किम ( वक्रता को ) इस शब्द में श्रमप्रत्यय का, २- श्यामला सामल (कृष्ण वर्ण की लड़की), ३- मन्मय: == बम्म (कामदेव ) इन शब्दों में सिप्रत्यय का, तथा४- निजकशरान् निश्रय-सर (अपने वाणों को यहां पर प्रस्तुत सूत्र से शस्-प्रत्यय का लोप किया गया है।
१०१६ - अपभ्रंशभाषा में षष्ठी विभक्ति का प्राय: (मामतौर पर) लोप हो जाता है । जैसे---