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चतुर्थपादः ★ संस्कृत-हिन्दी-टीका-द्वयोपेतम् ★
१४५ * अथ चूलिका-पैशाची-भाषा-विधि * विश्यवन्ध प्रभु वीर हैं, जगती के प्राधार, स्वयं तर जग तारते, महिमा अपरम्पार ।
यन्वन कर प्रभु वीर को, प्रातमगुरु का ध्यान,
चूलिका पैशाची का, करता हूं व्याख्यान ।। हैमशब्दानुशासन के अष्टमाध्याय में वर्णित प्राकृत प्रादि षविध भाषाओं में पांचवीं भाषा चूलिकापशाची है। इसे चूलिका-पैशाचिक भी कहते हैं। इस प्रकरण में इसी भाषा के विधि-विधान का वर्णन किया जा रहा है।
९९६--चुलिकापैशाचिक भाषा में वर्गों के तीसरे और चौथे वर्ण के स्थान में यथासंख्य (संख्या के अनुसार,कमशः) पहला और दुसरा वर्ण होता है। अर्थात् तीसरे वर्ण के स्थान में पहला और चौथे के स्थान में दूसरा वर्णन हो जाता है। जैसे-१-नगरम् नकर (शहर), २-मागरणः-- मक्कनो (याचक), ३-गिरिसटम-किरितट (पर्वत का किनारा), ४... मेघः-- मेखो (बादल), ५-व्याघ्रःबक्लो (वाचा, ६-धर्मः खम्मो (धूप),७---राजाराचा नरेश), 4-जर्जरम्-चच्चरं (कमजोर) 8-जीमूत, चीभूतो (बादल),१०-निर्भरः मिच्छरो (स्रोत,झरना),११-झझर छच्छरो (डोल, देत-बेत की छडो,कलियुग), १२-तडागम तटाक (तालाब), १३ मण्डलम् मण्टल (समूह, गोल, जिला), १४ असाफटमरुको (उमरू, वाद्यविशेष), १५-पाम् सम्म काठ (कठिन, मजबूत), १६षष्ठःAण्ठो (नपुंसक), १७-ढक्का ठक्का (वाचविशेष, बडा होल), १८-भवन: मतनो (कामदेव), १९ कन्दर्पः कन्लप्पो (कामदेव),२०-चामोदरः तामोतरो (श्रीकृष्ण),२१-मधुरम्-मधुरं {मीठा), २२-बान्धवः पन्थयो (भाई, बन्धु), २३–ठूली 4 थूली (रअ), २४...-बालक, पालको (बच्चा), २५-रभसः= रेफसो (सहसा, एकदम, क्रोध, हर्ष, खेद), २६--रम्भारम्फा (अप्सराविशेष), २७. भगवती=फावती (भगवत्स्त्रापा नारी),२८-- नियोजितम् -- नियोचित (कार्य में लगाया हुआ), यहां पर वर्ग के तीसरे वर्ण को पहला और चौथे वर्ण को दूसरा वर्ण किया गया है । सिकार फरमाते हैं कि कहीं पर वर्ग के लाक्षणिक (लक्षण-व्याकरण के नियम से प्राप्त) तीसरे वर्ण को पहला मोर चौथे को दुसरा वर्ण भी हो जाता है, जैसे ---१-प्रतिमा के रेफ का ३५० वें सूत्र से लोप, तथा २०६ वे ससे उसके तकार को डकार होकर परिमापौर-ग्रा का ४१०वें सत्र से दाढा यह रूप बनता है। यहां पर डकार और ढकार लाक्षणिक है.-.-व्याकरण के लक्षणों-सूत्रों से सम्प्राप्त है, अतः प्रस्तुत सूत्र से वर्ग के तृतीय वर्ण को पहला वर्ण होने पर पडिमा - पटिमा (फोटो) और वर्ग के चतुर्थ वर्ण को दूसरा वर्ण होने पर दादा-ताठा (दाढ, बड़ा दान्त) यह रूप हो जाता है। ९६७-चूलिका-पैशाचिक भाषा में रेफ के स्थान में विकल्प से लकार होता है। जैसे
प्रशमत प्रणयप्रकुपित-गौरी-धरणान-लग्न-प्रतिबिम्बम् ।
सशसु मखदपरणेषु एकादश-तनु-वरं रुद्रम् ।। १ ।। *जैन-धर्म-दिवाकर, पाचार्यसम्राट् गुरुदेव पूज्य श्री मात्माराम जी महाराज। .