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चतुर्थयादा
*संस्कृत-हिन्दी-टीकाद्वयोपेतम् * परन्तु प्रस्तुतसूत्रे तनिषेधे, पूर्व बदेव मायुधं इति भवति । बेयरः । अत्र १७७ सूत्रेण दकार-धकारलोप प्राप्ती प्रस्तुतसूत्रेण तन्निषेधे,पूर्ववदेव ९७८ सू० दकारस्थ सकारे,४९१ सू० सेॐः, डिति परेऽन्त्यस्वरावेोपे सेक्रो इति भवति । एवमन्त्राणामपि । यथा --- १७७ सूत्रादीनामुदाहरणानि प्रदतानि, एवमेव अन्यसूत्राणामप्युदाहरणानि स्त्रबुद्या समवगन्तव्यानीसि भावः। समाप्त पैशाचोभाषेति ! पैशाचीभाषायाः प्रकरणम्-अध्यायः समाप्तम्-सम्पूर्णतां गतम् । मूलग्रन्थे यथा पैशाचीभाषा-प्रकार ससाप्तिमगमत्तथैव बालमनोरमाटीकायामपि तद्विवेचनं समाप्तिमेति ।।
पैशाच्याः ललिता पाल्या, मुनिज्ञानेन निमिता, आत्मगुरोः प्रसान, गता मरणता खलु । * समाप्त पेशाचीभाषा-विवेचनम् *
* अथ पैशाची-भाषा-विधि * त्रिशलानन्दन वीरवर, महावीर भगवान, मनसा वाचा, कर्मणा, पलपल करूं प्रणाम ।
अपी, तपी विद्वान थे, गुरुवर भात्माराम,
धर्मदिवाकर योगि-वर, मङ्गलमय शुभ नाम । गुरुचरणों का ध्यान कर,लिखता है"मुनि शान";
अब पेशाची गिरा का, हिन्दी में ध्याख्यान । ... . हैमशब्दानुशासन के आठवें अध्याय में प्राकृत और शौरसेनी आदि छ: भाषामों का विवेचन किया गया है। पैशाची भाषा का जन में चतुर्थ स्थान है । क्रमानुसार अब इस का विवेचन करने लगे हैं। पैशाची शब्द के कोषकारों ने अनेकों अर्थ लिखे हैं। जैसे-------धार्मिक कृत्य के अवसर पर दी जाने वाली भेंट,२-रात्रि,३-किसी धार्मिक विधान के समय बनाया हुमा नैवेद्य-भोज्य पदार्थ जो किसो देवता को अर्पण किया जाता है, ४- प्राकृतिक (प्रकृति से उत्पन्न) भाषा का एक भेद । प्रस्तुत में पैशाची शब्द एक प्राचीन भाषा का बोधक है। यह भाषा कभी प्राचीन युग में बोली जाती रही है। इस के क्या विधिविधान हैं ? प्राकृत, शौरसेनी तथा मागधी भाषा से इसका कितना अन्तर है ? प्रस्तुत प्रकरण में इन सब बातों पर प्रकाश डाला जा रहा है।
९७४-पैशाचीभाषा में '' के स्थान में यह प्रादेश होता है। जैसे-१-प्रज्ञा पन्ना (बुद्धि), २-संजा-सा (चेतना, होश, ज्ञान, व्याकरण में बह विकारी शब्द जिससे किसी यथार्थ या कल्पित पदार्थ का बोध हो), ३-सर्वज्ञः सध्वस्त्रो (सब कुछ जानने वाला), ४-ज्ञानम् स्त्रानं (बोध), ५. विज्ञानम् विमानं (विशिष्ट ज्ञान), यहाँ पर शके स्थान में 'ज' यह प्रादेश किया गया है।
९७५-पैशाची भाषा में 'राज' इस शब्द में जो 'श' है, इसके स्थान में चिज' यह प्रादेश