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चतुर्थपाद:
★ संस्कृत-हिन्दी- टीका-द्वयोपेतम् ★
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((इन्द्रियों काम करने वाला) है, वैसा दुःखों को भी सहन करने वाला है) इत्यादि उदाहरणों में प्रकार को एकार किया गया है। और ये सब प्राकृत के उदाहरण हैं । अतएव वृत्तिकार फरमाते हैं कि श्राप्राकृत में प्रस्तुत सूत्र का ही विशेष रूप से उपयोग होने से जैनागमों की भाषा अर्धमागधी कही जाती है ।
EZE---भागधीभाषा में रेफ तथा दन्त्य ( जिस का दन्त स्थान हो) सकार के स्थान में यथासंख्य (संख्या के अनुसार ) लकार तथा तालव्य (जिस का तालु स्थान हो । शकार होता है । अर्थात् रेक को लकार और सकार को शकार हो जाता है। जैसे रेफ के उदाहरण - १ - नरःनले (मनुष्य), २- करः-कले (हाथ), सकार के उदाहरण- १ - हंस हंशे (मानसरोवर में मोती चुगने वाला पक्षी), २- श्रुतम् - शुदं (शास्त्र, सुना हुआ), ३- शोभनम् शोभणं (सुन्दर) दोनों (रेफ श्रीर लकार) के उदाहरण - १ - सारसः = शालशे (सारस नामक पक्षी), २-पुरुषः पुलिशे (मनुष्य) इन प्रयोगों में प्रस्तुत सूत्र की प्रवृत्ति की गई है।
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रभस दश- सुर-शिरो- विगलित-मन्दार- राजितांत्रियुगः ।
धीरजिनः प्रक्षालयतु मम सकल मव- अम्बालम् ॥ १ ॥
अर्थात् पापों से मुक्ति प्रधिगत करने की लालसा रखने वाला कोई साधक भगवान महावीर की स्तुति करता हुआ कहता है कि श्रद्धातिरेक के वेग कारण नम्र ( झुके) हुए देवों के सिरों से गिरे मन्दार नामक पुष्पों से जिनका चरण-युगल (दोनों चरण) सुशोभित हो रहा है, वे जिनेन्द्र भगवान महावीर मेरे सकल अवद्य (पाप) रूप जम्बाल (काई) को प्रक्षालित करें, उसे दूर कर दें ।
इस श्लोक में पठित- १ - रमस लहरा, २ नमिल, ३- सुरशुल, ४-शिरस्= शिल, ५ मन्वार = मन्दाल, ६ – राजिस क्लायिद, ७-६ - वीरवील, म-सकल-शयल इन शब्दों में प्रस्तुत सूत्र से रेफ को लकार और सकार को शकार किया गया है।
६६० - मागधी भाषा में संयोग में वर्तमान (विद्यमान ) सकार और षकार को सकारादेश होता है, किन्तु ग्रीष्म शब्द के षकार को स का आदेश नहीं होता । ३४८ वें सूत्र से ऊर्ध्वस्थित (संयुक्त वर्ण मैं पहले रहे हुए) षकार और सकार का लोप हो जाता है और जिन शकार, षकार और सकार के आदि में स्थित यकार प्रादि वर्णों का लोप होता है, उनके प्रादिम स्वर को ४३ वे सूत्र से दीर्घ होता है, किन्तु प्रस्तुत सूत्र ने इन सब कार्यों को बाघ कर संयुक्त सकार और षकार को सकारादेश का विधान कर दिया है। इसी लिए इस को अलोप आदि विधियों का अपवादसूत्र माना जाता है। सकार के उदाहरण इस प्रकार हैं - १ -प्रत्खलति हस्ती पस्खलदि हस्ती (हाथी गिरता है), २- बृहस्पतिः arrat (बृहस्पति देवों का गुरु ), ३ – मस्करी मस्कली (साधु, चन्द्रमा), ४---1 - विस्मये विस्मये ( माश्वर्य में ), षकार के उदाहरण- १ - शुष्कवाद शुरूक-दालु (सूखा लक्कड़), २--कटम् फस्ट ( दुःख ), ३ - विष्णुम् विस्तु (विष्णु को), ४- शष्पकवलः शस्प कवले ( घास का ग्रास ), ५ - उष्मा उस्मा (गरमी ), ६--- निष्फलम् = निस्फलं (फन से रहित), ७-- धनुष्-खण्डम् धनुखण्ड (घनुष् का टुकड़ा), यहां पर संयुक्त सकार और षकार को सकारादेश किया गया है। प्रश्न उपस्थित होता है कि प्रस्तुत सूत्र में- अग्रीष्मे (ग्रीष्म शब्द को छोड़कर), यह पद किस लिए पढ़ा गया है ? उत्तर में निवेदन है कि ग्रीष्माषसरः गिम्हवाशले (ग्रीष्म ऋतु का दिन) आदि पदों में संयुक्त षकार को सकारादेश का निषेध करने के लिए 'ग्रीष्मे' इस पद का ग्रहण किया गया है।
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