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* प्राकृत-व्याकरणम् *
चतुर्थपादः चक्षुलिके! (हे चतुर दासी!),यहां पर शौरसेनी के ९५२वें सत्र से चेटि के ग्रामन्त्रण में 'हजे इस निपात को प्रयुक्त किया गया है। २३---विस्मयः,जीववरसा में जननी हीमाणहे, जीवन्तवश्चा मे जणणी [पाश्चर्य है कि मेरी माता जीवद्वत्सा (जिस का बछडा जोबित है) है, उवात्तराधव नामक काव्य में एक राक्षस का यह कथन है, उसी का उद्धरण यहां दिया गया है। यहां विस्मय मर्थ मैं शौरसेनीभाषा के ९५३ वें सूत्र से 'होमागहें इस निपात का प्रयोग किया गया है। तथा-खेका, परिश्वजस्तो परमेतेन निमविधेः खुर्व्यवसितेन-हीमाणहे, पलिस्सन्ता हंगे एदेश नियविधिणो दुश्ववशिदेण खेद है कि हम परिवङ्ग (मालिङ्गन) करते हुए अपने भाग्य की प्रतिकूलता से फंस गए], यहां पर निर्वेदग्लानि प्रर्थ में शौरसेनीभाषा के ९५३ वे सूत्र ने 'हीमारणहे इस निपात का विधान कर रखा है। यह वाक्य 'विक्रान्त भीम' नामक काव्य में एक राक्षस की ओर से कहा गया है, उसी का उल्लेख यहां किया गया है। २४-नन अवसरोपसर्पणीयाः राजानः ?=णं अवशलोपशप्णीया लायाणो ? [क्या राजालोग अवसर (मौके) के अनुसार चलने वाले होते हैं ?], यहां पर शौरसेनीभाषा के ९५४ - सूत्र से 'मनु' इस अर्थ में 'रग इस नपास का प्रयोग किया गया है। २५-हर्षः, एतया सुमिलया सुपरिघटितो भवान् == अम्महे एमाए शुम्मिलाए शुपलिगदिदे भवं [यह हर्ष की बात है कि प्राप मिला (नारी) से सुपरिघटित है,उस ने पाप को खूब ग्रहण कर रखा है]यहां पर शौरसेनीभाषा के ९५५ वें सूत्र से हर्थि में 'अम्महे इस निपात का प्रयोग किया गया है। २६-होही, सम्पन्नाः मे मनोरथाः प्रियवयस्यस्यही-ही संपन्ना में मगोलधा पियवयस्सस्स (प्राहा, श्राहा !, मेरे प्रिय मित्र के मनोरथ पूर्ण हो गए), यहां पर शौरसेनी भाषा के ९५६ वें सूत्र विदूषकों के हर्ष को अभिव्यक्ति में 'होही' इस निपात का प्रयोग किया गया है।
९५७ वे सूत्र के अनुसार मागधीभाषा में भी प्राकृतभाषा के विधिविधान का पाश्रयण किया जाता है । वृत्तिकार फरमाते हैं कि प्राकृतभाषा के प्रकरण में पठित चतुर्य सूत्र से लेकर ९३१ वें सूत्र तक जिसने भी सूत्र हैं और उन में जो-जो उदाहरण हैं, इन के मध्य में अमुक उदाहरण (जो मागधीभाषा के साथ मिलते जुलते हैं) तदवस्य (प्राकृत के समान) ही मागधी में संग्रहीत होते हैं, और प्रमुक उदाहरण उन से (प्राकृत-भाषा-प्रकरण में पठित उदाहरणों से) भिन्म अमुकं प्रकार के (मागधीभाषा-सम्मत नियमों से नियमत) होते हैं,यह विभाग-पर्यालोचन (सम्यक विवेचन)करके स्वयं ही जान लेना चाहिए। भाव यह है मागधी भाषा के विधिविधान में प्राकृत-भाषा तथा शौरसेनी भाषा के विधि-विधान का भी प्राश्रयण होता है। लोप, मागम, प्रादेश मादि जिन कार्यों का निर्देश प्राकृत तथा शौरसेनी भाषा में कर रखा है, उनका मागधी भाषा में भी संग्रहण कर लेना चाहिए किन्तु ध्यान रहे कि जिनका मागधीभाषा के नियमों के साथ विरोध नहीं है, उन्हीं नियमों का इस भाषा में संग्रहण होता है,अन्यों का नहीं । जैसे---प्राकृत भाषा में संयुक्त पकार का ३४८ वें सत्र से लोप होता है, किन्तु मागधी-भाषा ९६० वें सत्र से संयुक्त पकार को सकारादेश का विधान करती है। ऐसी दशा में षकारलोप प्रसंग में) मागधीभाषा में प्राकृत भाषा का नियम लागू नहीं होगा। इसी भान्ति अन्यत्र भी समझ लेना चाहिए।
गिरा मागधों का हुआ, परिपुरण व्याख्यान । पतो छात्रगण ! च्याम से, विच बनो "मुनि शाम" ॥
* मागधी-भाषा-विवेचन समाप्त *