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चतुर्थपादः
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* संस्कृत-हिन्दी-टीकाद्वयोपेतम् * ८९५--स्त्रिदि-प्रकार स्विदि आदि धातुओं के अन्त्य वर्ण को द्विरुक्त (द्वित्व) जकार होता है। जैसे-१-सडिस्वेदित्र्या-सम्बतसिजिजरीए (सभी प्रक्षों से पसीना बहाने वाली का), २सम्पद्यते-संपज्जइ (वह सम्पादन करता है), ३-खिखते-खिज्जह (वन दिन्न होता है। यहां पर स्विदि प्रादि घालमों के अन्तिम वर्ण को 'जज' यह आदेश होता है। सिकार फरमाते हैं कि प्रस्तुत सूत्र में "स्थिवाम्" यह जो बहुवचनान्त पद दिया है, यह प्रयोगानुसरण के लिए है। भाव यह है कि जहां पर 'जज' यह आदेश दिखाई देता हो उसकी सिद्धि इस सूत्र के द्वारा कर लेनी चाहिए।
८९६-व्रज्, नृत् और मद् इन धातुओं के अन्तिमवर्ण को द्विरुक्त (वित्त्व) चकार होता है। जैसे-----व्रजति वच्चाई (वह जाता है), २--नृत्यति नच्च (वह नृत्य करता है), ३-मनमच्छह (यह स्तुति करता है) यहां पर व्रज आदि धातुओं के अन्त्य वर्ण के स्थान में 'च' यह प्रादेश किया गया है।
६७-रुद् और नम धातु के अन्त्य वर्ण के स्थान में चकारादेश होता है। जैसे ...-१-रोविति स्वइ, रोबइ (वह रोता है), २...नमति-नवइ (वह नमस्कार करता है) यहां पर रुद् के दकार को और नम के मकार को बकार किया गया है।
१९५-उत् उपसर्ग पूर्वक विज् धातु के अन्त्य वर्ण के स्थान में वकार होता है। वैसे---- उद्विजाति-उविवाद (वह उद्विग्न होता है), २--उगः उठवेबो (क्लेष) यहां पर जकार के स्थान में वकारादेश किया गया है।
.. - खाद और धाव धातु के अन्त्य व्यञ्जन का लोप होता है। जैसे-१-बारति= खाइ, खाभाइ (वह खाता है),२०खाविष्यति- खाहिइ {वह खाएगा),३-खावखाउ (वह खाए), ४-चावतिधाइ (वह दौड़ता है), ५-धाविष्यति-धाहिह (वह दौड़ेगा), ६-यावत धाड (वह दौडे) यहां पर दकार और वकार का लोन किया गया है। यहां पर बहुलाधिकार के कारण पर्तमाना (लद), भविष्यत् (लद) और विधि (लोट, विधिलिङ्) आदि के एकवचन में ही खाद और धाव धातु के अन्त्य व्यञ्जन का लोप होता है, अन्यत्र नहीं। इस लिए.---१-बादन्तिम खादन्ति (के खाते हैं), २- बावन्ति : धावन्ति (वे दौडते हैं) यहां पर दकार और बकार का लोप नहीं हो सका। वृत्तिकार फ़रमाते हैं कि बहुलाधिकार के कारण कहीं पर एकवचन में भी वकार का लोप नहीं होने पाता ! जैसे-धावति पुरतः पावइ पुरग्रो (वह प्रागे दौड़ता है) यहां पर एकवचन था तथापि बहुलता के कारण वकार का लोप नहीं हो सका।
२००-सृज्धातु के अन्तिम वर्ण को रेफादेश होता है। जैसे------निसृजति निसिरह (वह बाहर निकलता है), २-धुत्सृषति - बोसिरह (वह परित्याग करता है),३-व्युत्समामि- वोसिरामि (मैं परित्याग करता हूं) यहां पर जकार को रेफादेश किया गया है।
९०१-शक आदि धातुओं के अन्तिम वर्ण को द्वित्व वर्ण होता है। जैसे--१-दाक्का उबाहरम-शाक्नोति सक्कई (बह समर्थ होता है), २-जिम् का उदाहरण --जेमति-जिम्मई (वह भोजन करता है), ३-लग् का उदाहरण-लगतिलग्ग (वह लगता है, मिलाप होता है), ४.-मम्का उदाहरण- मगति-मम्गाइ (वह गति करता है),५---कुप का उदाहरण-कुप्यति-कुप्पई (वह कोप करता है), ६. नर का उदाहरण-नश्यति नस्सइ (वह नष्ट होता है), ७- अद् का उदाहरण पर्मचालि-परिप्रट्टा (वह पर्यटन करता है), -सुट का उवाहरण--प्रलुटति पलोट्टा (वह लोटता है),