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चतुर्थपादः
* संस्कृत-हिन्दो-टीकाद्वयोपेतम् ★ ७७२-मस्जि धातु के स्थान में-१-प्राउड्ड, २-पिजहर, ३-बुदा और -खुप ये चार आदेश विकल्प से किए जाते हैं। जैसे-मजति पाउहुई, शिउहुइ, बुड्डुइ, खुपद, प्रादेशों के प्रभाव-पक्ष में-मज्जा (वहां स्नान करता है) यह रूप बनता है।
७७३- पुजि धातु के स्थान में आरोल और धमाल ये दो प्रादेश विकल्प से किये जाते हैं। जैसे -
पुलियारोल इ, वमालइ आदेशों के प्रभाव-पक्ष में ---पुरुमा (वह इकट्ठा करता है) यह रूप बनता है।
७७४--लस्मि धातु के स्थान में 'जोह' यह अादेश विकल्प से होता है। जैसे----लज्जते जीहाइ मादेश के प्रभाव-पक्ष में-- लम्जइ (वह लज्जा करता है) यह रूप होता है।
७७५-तिजि धातु के स्थान में ओखुक्क यह आदेश विकल्प से होता है । जैसे-तेजति प्रोसुक्कइ (वह तेज करता है) आदेश के प्रभाव-पक्ष में तेजनम् = तेअणं (तेज करना) यह रूप बनता है। यहां पर वैकल्पिक होने से तिजि धातु को पोसुक्क यह प्रादेश नहीं हो सका।
७७६-मृजि धातु के स्थान में..-१----उघस, २-लुन्छ, ३पुण्य. ४-पुस, ५-फुस ६-पुप्त, ७-लुह, ८-हुल और रोसाण ये नव आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे-भाष्ट्रि- उपधुसइ, लुन्छइ, पुछइ, पुसद, कुसइ, पुस इ, लुहइ, हुलइ, रोसाण आदेशों के प्रभाव-पक्ष में--मज्जा (वह शुद्ध करता है) यह रूप होता है।
७७भजि धातु के स्थान में..... वेमय, २---मुसुमूर, ३-मूर, ४. सूर, ५०, ६विर,--पविरज, करम्म और हनीरज ये नव प्रादेश विकल्प से होते हैं । जैसे---भक्तिवमयइ, मुसुमूरइ, मूरइ, सूरइ, सूटइ, विरइ, पधिरजइ, करजइ, नीरजइ आदेशों के प्रभाव-पक्ष में-माइ, (वह तोडता है!, यह रूप बन जाता है ।
७७८-अनु उपसर्ग पूर्वक जि (अ) धातु के स्थान में पडिआग यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे - अनुवति-पडिअम्गइ.प्रादेश के अभावपक्ष में ----अणुवश्चइ (वह पीछे जाता है) यह रूप होता है।
७७६ --अजि धातु के स्थान में विद्यब यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे--प्रति-विढवइ, प्रादेश के प्रभाव-पक्ष में अज्ज (वह पैदा करता है, वह कमाता है) यह रूप होता है ।
..७८० ---युज् धातु के स्थान में--.--जुञ्ज, २-- जुम्न और ३-जुप्प ये तीन प्रादेश होते हैं। जैसे---चुमक्ति जुन्जइ, जुज्जइ, जुप्पइ, (वह जोड़ता है। यहां पर युज् धातु के स्थान में जुज प्रादि तीन आदेश किए गए हैं।
७८१ भुज् धातु के स्थान में.-१-भुञ्ज, २--जिम, ३--ओम, ४--कम्म, ५...अण्ह, ६ - चमड, ७--समारण और -ब ये साठ प्रादेश होते हैं। जैसे--- भुक्ते - भुजइ, जिमइ, जेमइ, [कम्म कम्मेइ, अण्हाइ, चमढाइ, समाण इ, चड, (बह भोजन करता है) यहाँ पर भुज् धातु को भुञ्ज पादि माठ प्रादेश किए गए हैं।
७२-उप उगसर्ग पूर्वक भुज् धातु के स्थान में 'कम्मय' यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे-उपभुक्ते-कम्मत्रइ, आदेश के प्रभावपक्ष में-उपजह (वह उपभोग करता है) यह रूप बनता है।
७८३-घटि (घ) धातु के स्थान में..'गढ' यह आदेश बिकल्प से होता है । जैसे-घटते-
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