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★ प्राकृत व्याकरणम् ★
चतुर्थपादः
७५६ -- इलाम भ्रात् के स्थान में 'यह' यह प्रादेश होता है। जैसे -- श्लाघते सलहा (वह प्रशंसा करता है) यहां पर श्लाघ् धातु को सलह यह आदेश किया गया है।
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७६०-- खच् चातु के स्थान में 'बेअड' यह आदेश त्रिकल्प से होता है। जैसे- स्वथति वेग्रडइ प्रदेश के प्रभाव पक्ष में- खचइ (वह जमाता है) यह रूप होता है ।
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७६१ - पच् धातु के स्थान में सोहल और पउल ये दो प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे---- पति - सोल्लड, पडलर आदेशों के प्रभाव पक्ष में पथ ( वह पकाता है) ऐसा रूप बनता है।
७६२ -- मुच् धातु के स्थान में १--धड, २ - प्रवहेड, ३ – मेहल, ४ उस्सिक, ५ – रेलव ६--- खिल्लु र ७ - साडये सात आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे - मुञ्चति छहुइ, प्रवहेडइ, मेल्लड, उfeners, रेrवड, गिल्लुच्छड, धंसाडइ आदेशों के प्रभाव पक्ष में- मुअइ ( वह छोड़ता है) ऐसा रूप बन जाता है।
७६३ -- दुःख-विषयक (जिस का विषय- अर्थ दुःख हो) मुच् धातु के स्थान में 'विस' यह श्रादेश विकल्प से होता है । जैसे- दुःखं मुञ्चति णिव्वलेइ ( वह दुःख को छोड़ता है) यहाँ पर दुःखविषयक मु वात के स्थान में 'निव्वल' यह आदेश किया गया है।
७६४ - च् धातु के स्थान में -१ - बेहव, २- वेलय, ३-जूरब और ४ -- उम्मच्छ ये चार प्रदेश विकल्प से किये जाते हैं । जैसे-दयति-बेवइ, वेलवइ, जुरवइ, उमच्छर, प्रादेशों के प्र भाव पक्ष में वञ्च (वह ठगता है ) यह रूप बन जाता है ।
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७६५ -- रच् धातु के स्थान में-- १ - उगा, २ वह और ३-विवि ये तीन प्रादेश दिकल्प से होते हैं। जैसे- रचति उगह, अबइ, बिडविडइ प्रादेशों के प्रभाव पक्ष में श्यइ (वह रचना करता है) यह रूप बनता है।
७६६ -सम् और आङ् (आ) उपसर्ग पूर्वक र धातु के स्थान में - १---उवहत्य, २- सारथ ३ -- समार और ४ – केलाय ये चार प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे समारचयति उवहस्थ, सारas, समार, केलाय प्रादेशों के प्रभाव पक्ष में समारष्ट्र ( वह अच्छी तरह से तथा मर्यादा-पूर्वक रचना करता है। यह रूप होता है ।
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७६७ - सि धातु के स्थान में सिच और सिप ये दो प्रादेश विकल्प से होते हैं । जैसे--सिपति सिञ्चद, सिम्पड, आदेशों के प्रभाव पक्ष में- सेअइ (वह सिंचन करता है) यह रूप होता है। ७६८ धातु के स्थान में 'पुच्छ' यह श्रादेश होता है। जैसे- पृच्छति - पुच्छर ( वह पूछता है) यहां पर प्रन्छु' धातु को पुच्छ यह यादेश किया गया है।
७६६-- गज्' धातु के स्थान में बुक्क यह प्रादेश विकल्प से किया जाता है। जैसे—-गर्जति बुक्कद, प्रदेश के प्रभाव पक्ष में--- गजह ( वह गरजता है) यह रूप होता है।
गया है।
७७०- वृषकर्तृक [जिस का कर्ता वृष-बैल हो] गर्ज धातु के स्थान में 'दिषक' यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे - वृषभो गर्जति ढिक्कs (बेल गर्जना करता है) यहां पर वृषकर्तृक गज् धातु के स्थान में दिक्क यह आदेश किया ७७१ - राजि धातु के स्थान से १ अग्ध, २, ३ सह, ४--रीर, ५- - रेह ये पांच प्रादेश विकल्प से होते हैं। जैसे - राजते श्रग्ड, छज्जइ, सहद्द, रोरइ, रेहइ प्रदेशों के अभावपक्ष में 'राय' ( वह शोभा दे रहा है। यह रूप बन जाता है ।
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