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चतुर्थपादः
★ संस्कृत-हिन्दी-टीकाद्योपेतम् * ७६६ - प्राङ् (या) उपसर्ग पूर्वक छिदि धातु के स्थान में------ओअन्द और २-उहाल ये दो प्रादेश विकल्प से होते हैं । जैसे-१-पाधिनत्ति प्रोअदइ, उद्दालइ आदेशों के अभावपक्ष मेंपश्चिन्या (बह चारों ओर से खण्डित करता है) यह रूप होता है। .: ७६७-मृद्धातु के स्थान में -१-मल, २- मढ, ३-परिहट्ट, ४-- खड्ड, ५-बड, ६मर और पन्ना ये सात प्रादेश होते हैं । जैसे-मृत्नातिमलइ, मढइ, परिहट्टइ, खड्डइ,चड्ड६, मडइ, पन्नाड (वह मर्दन करता है। यहां पर मृद् धातु को मल आदि सात आदेश किए गए हैं।
७६५-स्पन्दि धातु के स्थान में चुलुचुल यह प्रादेश विकल्प से होता है । चन्दते-चुलुचुलइ. पादेश के प्रभा फाइव स्पन्दन करता है) यह रूप बनता है।
___७६६ . निर् उपसर्ग पूर्वक पदि धातु के स्थान में 'बल' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे- निष्पद्यते निवलइ प्रादेश के प्रभावपक्ष में-निप्पज्जइ (वह निष्पन्न होता है) यह रूप बनता है।
____८००-वि और सम् उपसर्गपूर्वक वदि धातु के स्थान में-१-विमट्ट, २-विलोट्ट और ३- फंस ये तीन मादेश विकल्प से होते हैं । जैसे--विसम्वदति--विपट्टइ, बिलोट्टइ, फसइ प्रादेशों के अभावपक्ष में वितंबयइ (वह अप्रमाणित करता है) यह रूप बनता है।
५०१-शद् धातु के स्थान में झड और पक्खोड ये दो आदेश होते हैं। जैसे-शीयते--- दुइ, पक्खोडइ (बह झटता है) यहां पर शाद् धातु को झड आदि दो प्रादेश किए गए हैं।
८०२-प्राक्रन्दि धातु के स्थान में 'रगीहर' यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे-आकरतेणीहरइ प्रादेश के प्रभावपक्ष में अक्कलह (वह प्राक्रदन करता है) यह रूप होता है।
८०३---खिदि धातु के स्थान में जुर और विसर ये दो मादेश विकल्प से होते हैं। जैसेविधते-जुरइ, विसूर इ, प्रादेशों के प्रभावपक्ष में --खिज्जइ (वह खेद करता है) यह रूप बनता है।
५०४--रुधि धातु के स्थान में-'उत्थध' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-रुणद्धि उत्थन प्रादेश के प्रभावपक्ष मेंन्धा (व रोकता है) ऐसा रूप बनता है।
८०५–नि उपसर्ग पूर्वक धि (षे) धातु के स्थान में हक्क'यह प्रादेश विकल्प से होता है। जैसे निषेधति हक्काइ आदेश के अभाव में-निसेहर (वह निषेध करता है) ऐसा रूप बनता है।
५०६--कुधि धातु के स्थान में 'जूर यह श्रादेश विकल्प से होता है । जैसे-कुध्यति-जूरइ प्रादेश के प्रभावपक्ष में-भर (वह क्रोध करता है। यह रूप बनता है।
२०७-जन् धातु के स्थान में जा और अम्म ये दो आदेश होते हैं। जैसे-जायते-जाइ,जम्मद (वह उत्पन्न होता है) यहां जन् धातु को जा प्रादि दो भादेश किए गए हैं।
--तनि धातु के स्थान में--१-सह,२-तडु,३-- तव और ४-विरल ये चार आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे---तनोति तडइ, तड्डह, लड्डवइ, विरल्लइ प्रादेशों के प्रभावपक्ष में--- णा (वह विस्तार करता है) यह रूप बनता है।
८०९--तृप् धातु के स्थान में-'थिप्प' यह आदेश होता है। जैसे-तृप्यतिथिप्पड़ (बह तृप्त होता है। यहां पर तृप् धातु को 'थिप्प' यह आदेश किया गया है।
८१०-यदि सूप् धातु उप उपसर्ग पूर्वक हो तथा इसे गुण कर के रखा गया हो तो इसके स्थान में 'अलिलाम' यह आदेश विकल्प से होता है। जैसे-उपसर्पतिअल्लिाह मावेश के प्रभाव