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ठाणं' और अनुयोगद्वार में रेयकाव्य के सात प्रकार मिलते हैं
ठाण
अनुयोगद्वार
अक्षरसम
पदसम
तालसम
लख्य
ग्रहसम
तंत्रीसम
तालसम्म
पादसम
लग
ग्रहसम
निःश्वसितोच्छ्वसितसम
निःश्वसितोच्छ्वसितसन संचारसम
संचारसम
अनुयोगद्वार में तंत्रीसम के स्थान पर अक्षरसम तथा पादसम के स्थान पर पदसम का उल्लेख है। स्वर के अनुकूल निर्मित गेमपद के अनुसार गाया जाने वाला गीत पादसम सांस लेने और छोड़ने के क्रम का अतिक्रमण न करते हुए गाया जाने वाला गीत निःश्वसितोच्छ्वसितसम तथा सितार आदि के साथ गाया जाने वाला गीत संचारतम कहलाता है।
चौर्णकाव्य
.
जो गद्य और पद्य मिश्रित होता है, वह चौर्णकाव्य कहलाता है। दिश्वनाथ ने चौर्ण को गद्यकाव्य का भेद माना है।' आचारांग का प्रथन श्रुतल्कंध चौर्णकाव्य में निबद्ध है। गद्यकाव्य की लगभग विशेषताएं इसमें घटित होती हैं। चौर्णकाव्य की निम्न विशेषताएं हैं"
• जो अर्थबहुल हो अर्थात् जिसमें एक-एक पद के अनेक अर्थ हों । जो अर्थ वाला हो, जो अनेक नयवादों की गंभीरता से महान् • जो हेतुमुक्त हो ।
महान्
0
• जो च, वा, ह आदि निपातों से
हो
नियुक्ति पंचक
I
युक्त I
•
जो प्र, परा से आदि उपसर्गों से युक्त हो ।
जो
बहुपाद अर्थात् जिसके चरणों का कोई निश्चित परिमाण न हो । जो अव्यवच्छिन्न — विरानरहित हो ।
•
B
जो गम शुद्ध हो अर्थात् जिसमें सदृश अक्षर वाले वाक्य हों।
&
जो नय शुद्ध हो अर्थात् जिसका अर्थ नैगम आदि विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रतिपादित हो ।
यातायातपथ
५/८/१३ ।
२ अन्डा ३०७/८ ३ नाहित्यदर्पण ६/३३० ।
प्राचीनकाल में आज की भांति यातायात सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं लेकिन फिर भी नियुक्तिकार ने मार्ग शब्द की व्याख्या में द्रव्य मार्ग के अंतर्गत तत्कालीन यातायात के अनेक मार्गों का स्पष्ट संकेत किया है।" ये मार्ग उस समय की भौगालिक एवं सांस्कृतिक स्थिति को स्पष्ट करने वाले हैं।
१. फलकं मार्ग - जहां कीचड़ अधिक होता या गढ़ों को पार करना होता, वहां उसे पार करने के लिए लकड़ी के फलक बिछा दिए जाते, उसे फलक मार्ग कहा जाता था । '
४. शनि १५० ।
५. सूनि १०८ । ६. सूच्. १ । १२३ ।