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नियुक्तिपंचक
पार्वतीय प्लेच्छ जाति विशेष,जो पर्वत पर रहकर बड़ी से बड़ी अश्वसेना और हस्तिसेना को भी पराजित कर देती है।
(सूचू. १ पृ. ९३) टाल-बिना गुठली का फल, कच्चा फल। टालाणि नाम अबदहिगाणि भण्णति ।
जिस फल में गुठली न पड़ी हो, उसे टाल कहा जाता है। (दजिचू. पृ. २५६) ठियप्पा-स्थितात्मा। ठितप्पा णाण-दसण-चरित्तेहिं ।
ज्ञान, दर्शन और चारित्र में स्थित व्यक्ति स्थितात्मा कहलाता है। (सूचू.१ पृ. २४८) • स्थितो व्यवस्थितोऽशेषकर्मषिगमात्मस्वरूपे आत्मा यस्य स भवति स्थितात्मा। सम्पूर्ण कर्मों के क्षय से जो आत्मस्वरूप में स्थित हो गया है, वह स्थितात्मा है।
(सूटी, पृ. ९७) णाणविणीय-ज्ञानविनीत । नाणं सिक्खति नाणी, गुणेति नाणेण कुणति किच्चाणि।
नाणी नवं न बंधति, नाणविणीऔ भवति तम्हा॥ जो ज्ञान को ग्रहण करता है, गृहीत ज्ञान का प्रत्यावर्तन करता है, ज्ञान से कार्य सम्पादित करता है तथा नए कर्मों का बंधन नहीं करता, वह ज्ञान विनीत कहलाता है।
(दशनि. २९३) गाणि-ज्ञानो। णाणी णाम जो विसए जहाबाट पासांत।
जो विषय को यथावस्थित देखता है, जानता है, वह ज्ञानी है। (आचू. पृ. ११५) णात-ज्ञात। णजति अणेण अत्था णातं। जिससे अर्थ ज्ञात होते हैं, वह ज्ञात है।
(दशअन्तू. पृ. २०) ज्ञायतेऽस्मिन् सति दान्तिकोऽर्थ इति ज्ञातम्। जिससे दाष्टान्तिक अर्थ जाना जाता है, वह ज्ञात है।
(दशहाटी. ५.३४) णिग्गंध-निग्रन्थ । मण्झऽमंतरातो गंथातो णिग्गतो णिग्गयो।
बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थ से जो अतीत है, वह निर्ग्रन्थ है। (सूचू.१ पृ. २४६ ) गिट्ठाण-निष्ठात्र । णिहाणं णाम जं सम्यगुणोमवेयं सव्वसंभारसंभिर्य तं णिहाणं भण्णा।
जो सर्वगुणसम्पन्न तथा सब प्रकार के उपस्कार से युक्त होता है, वह आहार निष्ठान कहलाता है।
(दशजिचू. पृ. २८१) णिसीहिया-नषेधिकी। णिसीहिया सज्झायथाणे। नषेधिकी का अर्थ है-स्वाध्याय का स्थान।
(दशअचू. पृ. १२६) णिह-निभ। जो अप्पाणे संजमतवेसु णिहेति सो णिहो।
जो स्वयं को संयम और तप में नियोजित करता है, वह निभ है। (आचू. पृ. ७०) णिह-वधस्थान । निहन्यन्ते प्राणिनः कर्मवशगा यस्मिन् तन्निहम्-आघातस्थानम्। जहां कर्म के वशवर्ती प्राणियों का वध किया जाता है, वह स्थान 'निह' कहलाता है।
(सूटी. पृ. १३७) णीरय-नीरज, कर्ममुक्त। णीरया नाम अट्ठकम्मरगडीविमुक्षा भणत्ति।
आठ प्रकार के कर्मों से मुक्त आत्माएं नीरज कहलाती हैं। (दशजियू. पृ. ११७)